बर्फ की मात्रा में हर दशक में औसतन 4.4 फीसदी की कमी हो रही है
न्यूजवेव @ नई दिल्ली
ग्लोबल वार्मिग के कारण धरती के तापमान में लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है जिसके कारण उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद बर्फ लगातार पिघल रही है। नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) ने एक ताजा अध्ययन में कहा कि आर्कटिक सागर के कारा क्षेत्र में गर्मियों के दौरान पिघल रही बर्फ, सितंबर माह में मध्य भारत में अत्यधिक बरसात की घटनाओं का कारण हो सकती है।
NCPOR के शोध अध्ययन के अनुसार, अब तक आर्कटिक सागर के बर्फ की मात्रा में हर दशक में औसतन 4.4 फीसदी की कमी हो रही है। हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं है, कि तेजी से समुद्री बर्फ की गिरावट उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में विषम मौसम की घटनाओं या भारत में मानसून के दौरान अत्यधिक वर्षा की घटनाओं को प्रभावित कर सकती है। इस अध्ययन के अनुसार आर्कटिक की पिघलती बर्फ उत्तर पश्चिमी यूरोप पर एक उच्च दबाव क्षेत्र का कारण बन सकती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि मानसून में देरी होने से अत्यधिक बारिश की घटनाएं समुद्री बर्फ की गिरावट के कारण होती हैं।
शोधकर्ताओं ने कहा कि आर्कटिक क्षेत्र में पिघल रही बर्फ के कारण ऊपरी स्तर के वायुमंडलीय सर्कुलेशन में परिवर्तन होता है जिससे अरब सागर की ऊपरी समुद्र की सतह का तापमान बेहद गर्म हो जाता है जो मध्यभारत में, विशेष रूप से सितंबर माह में, अत्यधिक बारिश का कारण बन सकता है।
इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता सौरव चटर्जी के अनुसार, आर्कटिक महासागर के बैरेंट्स-कारा सागर क्षेत्र में समुद्री बर्फ पिघल रही हैजो गर्मियों के दौरान खुले महासागर के ऊपर अधिक गर्मी के संचार सेऔर ऊपर की ओर हवा की गति को बढाती है। इसके बाद यह हवा उत्तर पश्चिमी यूरोप में एक गहरे एंटी साइक्लोनिक वायुमंडलीय सर्कुलेशन को तेज करती है। यह असामान्य ऊपरी वायुमंडलीय अशांति फिर भारतीय भू-भाग पर फैले कटिबंधीय एशिया क्षेत्र की ओर फैलती है। ऊपरी स्तर के वायुमंडलीय सर्कुलेशन में परिवर्तन के साथ-साथ अरब सागर की सतह के तापमान में वृद्धि संवहन और नमी की आपूर्ति में मदद करती है। जिसके परिणामस्वरूप भारत में अगस्त-सितंबर माह के दौरान अत्यधिक वर्षा की घटनाएं देखी जाती हैं। यह अध्ययन ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित किया है।
इससे पहले फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के मौसम वैज्ञानिक टी.एन कृष्णमूर्ति ने कहा था कि उत्तर पश्चिम भारत में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं के दौरान वातावरण में व्याप्त गर्मी, कनाडा के आर्कटिक क्षेत्र की यात्रा करती है जो आर्कटिक क्षेत्र में मौजूद बर्फ के पिघलने का कारण बनती है। (इंडिया साइंस वायर)