धर्मसभा: सुनेल में दिव्य संत पं.कमलकिशोरजी नागर की श्रीमद् भागवत कथा के लिए तीसरे दिन बढ़ाया पांडाल
न्यूजवेव @ सुुनेल
दिव्य गौसेवक संत पूज्य पं.कमलकिशोरजी नागर ने कहा कि जितना बडा बनने की होड़ करोगे, उतनी ही रोटी और हंसी कम होती चली जाएगी। सुखों को हमने नहीं भोगा, सुखो ने हमको भोगा है। सांसारिक जीवन में वस्तु-विषयों से संबंध बनाएं लेकिन उसके बाद ईश्वर को भी समय दें। एक उम्र के बाद जिम्मेदारियों बच्चों को सौंपकर भक्ति के लिए समय निकालें। बड़प्पन की चाह में हम हंसी, ताली, भजन सब कुछ छोड़ रहे हैं।
शुक्रवार को सुनेल-झालरापाटन बायपास मार्ग पर ‘नंदग्राम’ में विराट श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के तृतीय सोपान में उन्होंने कहा कि जिस तरह कबड्डी खेलते हुए खिलाड़ी छूकर तुरंत अपनी पाली में आ जाते हैं, ठीक उसी तरह दुव्र्यसन को छोड़कर तुरंत अपनी पाली में आ जाओ। याद रखें कि एक बार जिसे छू लोगे, वहां तक पुण्य है लेकिन बुढ़ापा आने तक बार-बार दुव्र्यसन करने की बजाय ईश्वर की माला पकड़ो। उन्होंने भजन ‘अवगुण बहुत किया प्रभूजी मैने अवगुण बहुत किया’ सुनाकर भक्ति रस बरसाया। हमारा जन्म एक क्षण में होता है, वैसे ही शरीर एक क्षण में खत्म हो जाता है। जीवन की इस सच्चाई को स्वीकार करके आनंद के हर क्षण को जीएं। भजन और भक्ति हम आजीवन भी करते रहेंगे तो कम है।
मीरा से सीखें भक्ति की वृत्ति
उन्होने कहा कि जिस तरह एक पेन बनाने की डाई होती है, भक्ति की पवित्र वृत्ति के लिए मीरा भी एक सांचा थी। उन्होंने जीवन में भक्ति रंग के अलावा कोई रंग अपने उपर नहीं चढ़ने दिया। हमें राजस्थान की वीर भूमि पर भक्तिमती मीरा का गिरधर के विरह में लिखा पत्र पढने को मिला, उसे पढकर अश्रूधारा बह जाती है।
मीरा ने गुरूवर को पत्र लिखा था- मेरा शोक व दुख हरो। यहां मुझे धक्का देते तो सहनीय था लेकिन ठाकुरजी को भी धक्का दे दिया। मुझे बताओ कि मैं किसके यहां जाउं। गुरूवर ने प्रत्युत्तर दिया कि जिस घर में राम नहीं है, उसके नाम से प्रीत नहीं है, उसको छोडकर वृंदावन चली आ। वे गिरधर के लिए सशरीर वृंदावन चली गई तो राजस्थान में अकाल पड गया था, यहां की जनता उनके पास गई और बोली, तू समाज का सांचा है, तू वापस राजस्थान चल। उसने जिस संसार को भोग लिया, वृंदावन जाकर वह वापस नहीं लौटी। भजन-सत्संग की वृत्ति होने से वह द्वारिकाधीश में समा गई।
कृृष्ण को अपना बनाकर तो देखो
पूज्य नागरजी ने कहा कि श्रीकृष्ण की हर चीज अलग होकर भी उसके नाम से जोड़ देती है। उसकी केवल बांसुरी, मोर मुकुट, वैजयंजी माला, शंख, चक्र, मुखारविंद, चरणपादुका, गदापद्म, कंठी या केसर तिलक भी हो तो वह कृष्ण का स्वरूप ही याद दिलाता है। जिनका कोई भाई न हो, पिता न हो, मित्र न हो, एक बार उसे अपना बनाकर देख लो। उधो ने जिस मन से उनको सखा बनाया, अर्जुन ने मित्र बनाया, किसी ने ईष्ट बनाया, वे प्रकट हुए और मदद की।
दर्शन करके दृष्टि सुधारोे
उन्होंने कहा कि भारत में 451 त्यौहार हैं, करोडों देवी-देवता हैं फिर भी हमारी दृष्टि कहीं ओर टिकी रहती है। सागर किनारे बैठे एक पंछी ने साधु-संतों की संगत की तो उसे लंका में बैठी सीता नजर आ गई। हम दर्शन और भजन से खुद को जोड़ लें तो जीवन में ईश्वरीय कृपा अवश्य दिखाई देगी।
कथा सूत्र-
– किसी के घर भोजन में केवल नमक मांगो, भजन में ईश्वर से क्षमा मांगो।
– हर कार्य में इंसान राजीनामा करना सीख लें तो कोर्ट में केस कम हो जाएंगे।
– धनाड्य की शौक पूरा करने में ही शोकसभा हो जाती है जबकि गरीब की कोई शोकसभा नहीं होती।
– मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोय, इस भाव से उसे सखा बना लो।
– कथा की वृत्ति से वैराग्य मिलता है।
– परिवार में हम एक-दूजे से राजी होगे तो खुशी बहुत मिलेगी।