ज्ञान महायज्ञ: बारां के पास श्री बड़ां के बालाजी मंदिर परिसर में श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव में गौसेवक संत पूज्य पं.कमलकिशोर ‘नागरजी’ के ओजस्वी प्रवचन।
अरविंद , बारां/कोटा, दिव्य गौसेवक संत पूज्य पं.कमलकिशोर ‘नागरजी’ ने कहा कि लौकिक व्यवहार मेें कुछ चीजें हमें ईश्वर प्रदत मिलती हैं। घर-परिवार में सुख, सम्पती या संतान की कमी होने पर हम दुखी हो जाते हैं। जरा सोचो, कितना काम उसके भरोसे छोड़कर कर रहे हो। हम भजन तो कर रहे हैं लेकिन उस पर भरोसा कम है। जबकि भजन से ज्यादा उसका भरोसा बड़ा है।
बारां के नजदीक प्राचीन श्रीबड़ा के बालाजी मंदिर परिसर में श्रीमहावीर गौशाला कल्याण संस्थान द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव एवं गौ-सम्मेलन में पूज्य नागरजी ने कहा कि इच्छा रहित मन बनाओ। मन में सोच लो कि ये मैने नहीं किया, ये हरि इच्छा से हुआ है। भजन ‘मुसाफिर यूं क्यूं भटके रे, ले ले हरि का नाम, काम तेरो कभी न अटके रे…’ सुनाते हुए उन्होंने कहा कि हम ईश्वर पर आश्रित को देखना भूल गए। आज अस्पतालों के हड्डी वार्ड में दोनों आंखों वालों से भरे हुए हैं, वहां किसी अंधे के पैरों पर प्लास्टर नहीं देखा होगा। वो बिना आंख सब जगह घूम लेता है लेकिन गिरता नहीं है। ईश्वर ने हमें सुंदर शरीर दिया, फिर दूसरी अपेक्षाएं क्यों बढ़ रही हैं। उसी पर आश्रित जीवन जीओ। समय से पहले वह नहीं देता है।
एक वृतांत में उन्होंने व्यवहारिक जीवन के यथार्थ को समझाया। उन्होंने कहा कि सब्जी या किराने वाले के पास हम चीजों का नाम लेते हैं, लेकिन मेडिकल स्टोर पर हम पर्ची देकर खडे़ रहते हैं। क्या दवा देना है, वो जानता है। यही प्रयोग ईश्वर के आगे करो। प्रार्थना भाव में खडे़ रहो, ईश्वर से वस्ुतओं का नाम लेकर आदेश मत दो। वह अन्तर्यामी है, जो खड़ा रहा, मौन रहा, उसे जल्द मिला है।
जैन संतों का उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि वे पहले बताते नहीं कि क्या आहार लेंगे, लेकिन उन्होंने जो सोचा किसी घर में वह मिल गया तो ग्रहण कर लेते हैं, अन्यथा आगे चल देते हैं। इसीलिए 12 करोड़ बच्चे जन्म लेने के बाद तीर्थंकर अवतरित होते हैं। यजमान पूर्व मंत्री श्री प्रमोद जैन भाया व श्रीमती उर्मिला भाया ने श्रीमद् भागवत को मंच पर विराजित किया।
देनहार कोई ओर है…
पूज्य ‘नागरजी’ ने एक प्रसंग में कहा कि जीवन में दूसरों से अपेक्षाएं बढ़ती जा रही हैं। इसमें तीन बातें अहम हैं। पहला, माता-पिता ने जीवन दिया, उनसे और कोई अपेक्षा मत रखो। दूसरा, ससुराल से दहेज की अपेक्षा मत करो। तीसरा, दुकान में किसी ग्राहक से कुछ ज्यादा लेने की अपेक्षा मत रखो। सोचो, यदि ये ही हमें सब कुछ दे देंगे तो फिर ईश्वर हमारे लिए क्या करेंगे। परिवारों में सम्पती लेने के लिए लड रहे हैं। देनहार कोई और है। उसका देने का तरीका ही अलग है। हम उसमें आस रखें और आश्रित होकर केवल उसे देखें।
ईश्वर से तार जुडे़ या नहीं, यह प्रयोग करके देखो
पूज्य नागरजी ने कहा कि अपनी कर्मगति को तीन बातों से समझ सकते हैं। पहला, हमने कोयला उठाकर बाहर फेंका तो हाथ काले हो गए, वही हाथ मुंह पर लगे तो मुंह भी काला हुआ लेकिन इसे हम धो सकते हैं। दूसरा, कोई धूप में ज्यादा देर खड़ा रहा तो काला हो गया लेकिन क्रीम से कुछ दिन में वह ठीक हो जाएगा। तीसरा, जो जन्मजात काला है, उसे ईश्वर ही ठीक कर सकता है। इसी तरह, कर्म करते हुए रिश्वत या भ्रष्टाचार से गलत पैसा कमाया, तो समझ लेना मैने कोयला पकड़ लिया है। इस पाप को किसी पवित्र अनुष्ठान से दूर कर सकते हैं लेकिन जो जन्मजात आसुरी वृत्ति लेकर आए और उत्पात मचा रहे हैं, वे इसी भोग में जीवन बिताएंगे। हमें सतोगुण, रजोगुण व तमोगुण तीन तरह के लोग दिखते हैं। हम दोष रोज कर रहे हैं, इसलिए नित्य भजन को आदत बनाओ। किसी काम को ईश्वर को सौगंध खाकर पूरा मत करो, उसमें भरोसा बढ़ाओ। ईश्वर से मेरे तार जुडे़ या नहीं, यह प्रयोग करके देखो। कथा में कोई पवित्र शब्द भी आपके पाप को हर लेते हैं। भजन ‘निज में निज का बोध करा दे, हरे पाप, हरि हर से मिला दे. मेरी सीधी बात करा दे, ऐसा कोई संत मिले..’ सुनकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे।
प्रथम सोपान के सूत्र-
– जिसके पास पवित्र तन, मन व धन है, वही धन्य है।
– ईश्वर पर भरोसा बढाओ, जो आज नहीं दिया, वो बाद में भेजेगा जरूर।
– हम उसके द्वार खडे़ हैं, क्या देना है, ये केवल वो ही जानता है।
– हे प्रभू, बुढापा ऐसा देना कि मेरे भजन मैं ही कर सकूं। मेरे काम मैं स्वयं कर सकूं।
– इच्छा रहित मन हो, हरि इच्छा से हर कर्म हो।