अमृत वर्षा: जीवन में तीन अमृत हमेशा लेना। पहला, चरणामृत, जो मंदिरों में प्रभू दर्शन करने से मिलेगा। दूसरा, वचनामृत,जो कथा-सत्संग में अच्छी वाणी से मिलता है। तीसरा, अधरामृत जो केवल मां की गोद में दुग्धपान से मिलता है।
बारां/कोटा। दिव्य गौसेवक संत पूज्य पं.कमलकिशोर ‘नागरजी’ ने कहा कि बिछिया असली हो या नकली, वह महिला के पैर में अच्छी लगती है, किसी डिब्बी में नहीं। नारी के पैर में भले ही नकली बिछिया क्यों न हो, वह सौभाग्यवती कहलाती है। इसी तरह,जो भक्त ईश्वर के चरणों में रहता है, वो भाग्यशाली रहता है। कोई धनाड्य होकर बंगलों में डिब्बी की तरह बंद रहते हैं, लेकिन कोई कथा-सत्संग से जाकर प्रभू के चरणों में भक्ति करते हैं, वहां वह कृपा वर्षा अवश्य करता है। जिस पर उसने दया दृष्टि डाल दी, वो तर गए। वर्षा में भीगना और सर्दी को सहना भी तप है। आप भक्ति में भीगे हो, इसलिए प्रभू के चरणों में हो। जहां मिले रोज यह चरणामृत लेते रहो।
बारां के बड़ां के बालाजी धाम में श्रीमद् भागवत कथामृत में उन्होंने कहा कि जीवन में तीन अमृत हमेशा लेना। पहला, चरणामृत, जो मंदिरों में प्रभू दर्शन करने से मिलेगा। दूसरा, वचनामृत,जो कथा-सत्संग में अच्छी वाणी से मिलता है। तीसरा, अधरामृत, जो केवल मां की गोद में दुग्धपान से मिलता है। अधरामृत न धरती पर मिलता है, न आसमान में। यह केवल मां की गोद में मिल पाता है। पांडाल में ‘भजन करो, गोविंद नहीं है दूर, भजन करो, गोविंद मिलेगा जरूर….’ गूंजा तो उन्होंने कहा कि यह चौथा अमृत प्राकृत दया के रूप में ऊपर से किसानों पर बरसा है। वो आपके खेत में वर्षा कर आगे की हरियाली की व्यवस्था कर रहा है।
हर गांव-द्वार वृंदावन बने
पूज्य नागरजी ने कहा कि जिस घर के द्वार या गांव में ठाकुरजी की दया व कृृपा हो, समझ लेना आप वृंदावन में है। अपने घर-गांव को वृंदावन बनाने के लिए तुलसी क्यारा (वृंदा), देशी शहद (मधुवन), मोरपंख, कदम का पेड़ एवं गाय ये पांच चीजें अवश्य हो, तभी वह वृंदावन का रूप लेगा। वहां कलियुग या असमय यमदूत का प्रवेश नहीं हो सकता।
पाप की धारा से हटो, पुण्य की धारा से जुड़ो
उन्होंने कहा कि आजकल केश (धन) से केस दब जाता है। अपराध करके मुलजिम पैसों से धारा बदलवा देते हैं, बरी हो जाते हैं। आप पैसों से केवल दोषमुक्त हो सकते हो। आज न चाहते हुए भी हमसे कहीं न कहीं पाप हो रहे हैं। भजन-दर्शन -सत्संग की धारा से जुड़कर आप पापमुक्त हो जाओ। शरीर के दोशों को भजन से दूर कर लो। भक्ति की धारा से हमेशा जुड़े रहो।
तृतीय सोपान सूत्र-
– निंदा पाठ हम रोज कर रहे हैं, गीता पाठ करना भूल रहे हैं।
– संसार नहीं है यहां रहने को, यहां कष्ट ही कष्ट हैं सहने को। बस, भक्ति से जुड़े रहो।
– बरसात हो या ठंड हमें भजन सुनना है। यही भक्ति का तप है।
– निंदा पाठ हम रोज कर रहे हैं, गीता पाठ करना भूल रहे हैं।
– ज्ञानवाणी से अपने अज्ञान को राख की तरह ढक दें।
– कथा व श्मशान दोनों जगह हम बिना बुलाए जाते हैं।
– मन भटकता है लेकिन बुद्धि चाहे तो एक क्षण में ईश्वर से मिला दे।