Thursday, 12 December, 2024

पिता जैसा पुत्र हो तो परिवार में खुशहाली आ जाए -संत पं.कमलकिशोरजी नागर

धर्मसभा: सुनेल में गौसेवक संत पं.कमलकिशोरजी नागर की श्रीमद् भागवत कथा में दूसरे दिन पहुंचे हजारों श्रद्धालु, 1.80 लाख वर्गफीट पांडाल छोटा पडा।
न्यूजवेव सुनेल
सरस्वती के वरदपुत्र एवं दिव्य गौसेवक संत पं.कमलकिशोरजी नागर ने कहा कि पुत्र पिता जैसा हो, शिष्य गुरू जैसा हो और भक्त भगवान जैसा हो जाए जो सारी बुराइयां अच्छाई मे बदल सकती हैं। लेकिन सनातन धर्म में इससे उलटी हो रहा है। मधुमेह पिता से पुत्र को वंशानुगत हो सकती है लेकिन पिता के अच्छे गुण पुत्र नहीं स्वीकार कर रहे हैं। जरा सोचें कि भक्ति वंशानुगत क्यों नहीं चल पा रही है। बच्चे अपने पिता से गुण, त्याग और संयम की सीख ले लें तो परिवारों में कलह खत्म हो जाएंगे।

गुरूवार को सुनेल-झालरापाटन बायपास मार्ग पर कथा स्थल ‘नंदग्राम’ में विराट श्रीमद््भागवत कथा महोत्सव के द्वितीय सोपान में उन्होंने कहा कि बीमारी हो या भिखारी बिना बुलाए आ जाते हैं लेकिन भक्ति अतिथी की तरह बिना बुलाए नहीं आती है। जीवन में अच्छाई को न्यौता देना सीखो। अच्छे गुण आएंगे तो आभा, वाणी, रस सब समान हो जाएंगे। दूसरे दिन 1.80 लाख वर्गफीट पांडाल श्रद्धालुओं से भर जाने से नागरिक धूप में खडे होकर प्रवचन सुनते रहे। शुक्रवार को पांडाल का विस्तार किया जाएगा।

‘बालक’ बडा होकर ‘पालक’ बने


दिव्य संत ने युवाओं से कहा कि बालक को जन्म से माता-पिता संभालकर बडा करते हैं, ठीक उसी तरह बालक बडा होने के बाद बुजुर्ग माता-पिता का पालक बनकर सेवा करे। बच्चे हर फार्म में पिता का नाम लिखते हैं, लेकिन उनकी कोई बात मानते नहींे हैं। इसी तरह, सनातन धर्म में आज हर जगह गुरू बनाने की परिपाटी है लेकिन उनकी बात मानने को कोई तैयार नहीं। जबकि सिख समाज में गुरू को ही ग्रंथ मानते हैं। जो मान गया वो जान गया। इसलिए गुरू बनाने से ज्यादा उसकी बात मानने पर ध्यान दो।
‘ब्रह्य’ दूध है और ‘माया’ चाय की तरह
पूज्य नागरजी ने चाय के उदाहरण से ब्रह्यज्ञान को सहज ढंग से समझाते हुए कहा कि हम ब्रह्य रूपी दूध, पानी, अदरक के साथ माया रूपी चाय पत्ती मिलाकर चाय बनाते हैं। लेकिन चाय पत्ती कडवी होती है, इसलिए छलनी से उसे निकालकरफेंक देते हैं। ब्रह्य सत्य है फिर हम माया से मुक्त क्यों नहीं हो पा रहे हैं। उस कडवी चायपत्ती को दूध के बिना संभव नहीं है। इसलिए जीवन में भक्ति व ब्रह्यज्ञान भी जरूरी है। भागवत कथा जीवन से भ्रम को निकालकर मन को ब्रह्य से जोड देती है।
हनुमान जैसे भक्त बनो
उन्होंने कहा कि श्रीमद भागवत में 18 हजार श्लोक, 12 स्कंध व 336 अध्याय हैं। इसके हर पन्ने पर कुछ पाने की कथा है। सांसारिक जीवन में हमने हर काम कर लिया, लेकिन ईश्वर को पाना अभी बाकी है। इसलिए जितना हो सके, भक्ति के तारों से जुडे रहें। उन्होंने कहा कि भक्त हनुमान जैसा बन जाए तो जो कार्य भगवान न करे, वह भक्त कर देता है।
कथा सुनने के लिए दूसरे दिन भी मध्यप्रदेश व राज्य से दूर-दूराज क्षेत्रों से सैकडों कृष्णभक्तों का सुनेल पहंुचना जारी रहा। कथा 4 दिसंबर तक चलेगी।
द्धितीय सोपान कथा सूत्र-
– पिता, गुरू या भगवान की नहीं मानते हैं, वहां सब शून्य हो जाता है।
– सुमति के लिए मां सरस्वती से तार जोडे रखना।
– बुद्धि प्रत्येक 2 माह मे ऋतुमति होकर विपरीत हो जाती है। ऐसे में धैर्यपूर्वक मौन रहें।
– विनाशकाले विपरीत बुद्धि हो जाती है। ऐसी भ्रष्ट बुद्धि संत सरोवर में शुद्ध हो जाती है।
– 60 साल के बाद घर में भी नहीं चलेगी, इसलिए सही उम्र मंे पुण्य कार्य करें।
– समय खराब हो तो किसी का बुरा मत मानो।
– संकल्प लेना हमारा काम है, उसे पूरा करना ईश्वर का काम है।

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