विराट धर्मसभा: दिव्य संत पं.कमलकिशोरजी नागर की श्रीमद् भागवत कथा में छठे दिन नंदग्राम में तीन घंटे बरसा भक्तिरस।
न्यूजवेव @ सुुुनेल/कोटा
झालावाड जिले में सुनेल-पाटन बायपास मार्ग पर चल रही विराट श्रीमद्् भागवत कथा में सोमवार को सरस्वती के वरदपुत्र संत पं.कमलकिशोरजी नागर ने ओजस्वी प्रवचनों में कहा कि काया, माया, छाया, जाया, कमाया और परनाया ये पांच तत्व कभी अपना साथ नहीं देते हैं। काया क्षणभंगुर है, माया चलायमान है, हम चलते है तो छाया साथ चलती हैं लेकिन विपत्ति में छाया भी दूर हो जाती है। इसलिए हम माया या छाया को साथी बनाए तो यह अविद्या है। जो द्वारिकाधीश को सारथी बनाए, वही विद्या है।
उन्होंने दशम स्कंध के सूत्र बताते हुए कहा कि आज स्कूल-काॅलेज में माया अर्जित करने के पाठ पढ़ाए जा रहे हैं, लेकिन माया से मुक्त होने का एक ही विद्यालय है-सत्संग। देश, सैनिक, धर्म व ग्रंथ सब सुरिक्षत रहें, इसके लिए उसके नाम की माला अवश्य करें। संकल्प लो कि तेरे नाम की माला मेरे गले में हो।
वो स्वर्ग है, ये उपस्वर्ग है
संत ‘नागरजी’ ने कहा कि हम स्वर्ग की कल्पना करते हैं लेकिन कर्मों से वो मिले न मिले, ऐसे पवित्र आयोजन में बैठना उपस्वर्ग समान है। जिन्हें स्वर्ग नहीं मिलेगा, उन्हें सत्संग मिल जाए, तो हर काम हो जाएगा। श्रीकृष्ण ने गांवों में 11 वर्ष बिताए, रक्षा की, नदियों को पवित्र किया, दुष्टों का संहार किया। वे स्वर्गलोक छोड़ नारायण से नर बनकर संतो के समागम में रहे। इसलिए जिस धार्मिक स्थल पर मनुष्य जाता है, उसके पाप घट जाते हैं।
हरि दर्शन से दूर करो दृष्टि दोष
उन्होंने कहा कि गोपियां रोज बंशीवाले के अष्ट दर्शन करती थी। संसार में हर चीज देखी जाती है। हमारी आंख का आॅपरेशन हो सकता है लेकिन ‘नजर’ का नहीं। अच्छी नजर से देखने का कोई चश्मा कोई बना नहीं सका। आप आराध्य देव के दर्शन करते हैं, जब आपके काम हो जाए तो समझ लेना कि उसकी नजर आप पर पड़ गई। ईश्वर ने हमारे कई काम कर दिए जो हमें मालूम ही नहीं हैं। इस विराट पांडाल में 3 घंटे तक सन्नाटा क्यों है। आप 3 घंटे तक मोबाइल मुक्त कैसे हो गए। भक्ति के तार सीधे उससे जोड़ देते हैं। परिवार में कोई संकट आने पर वह कंकर मार देता है।
रावण के पुतले पर रीझ गए, राम को भूल गए
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से देश में जब रामद्वारे बनाए जा रहे थे, तो छोटी जगह दी गई और रावण दहन के लिए विशाल दशहरा मैदान बनाए गए। हर जगह राम के लिए जगह नहीं है, रावण के लिए बडी जगह है। दुख इस बात का है कि रामनवमी पर उतने भक्त नहीं दिखते, जितने दशहरा मैदान पर रावण के पुतले के देखने के लिए आते हैं। पंजाब में दशहरे पर पटरी पर खडे़ होकर केवल रावण को देखने के फेर में कितने मोक्ष हो गए। हम उसके पुतले पर रीझ गए लेकिन राम की प्रतिमा को भूल रहे हैं। दशहरा मैदान में श्रीराम कथा करने के लिए आज अनुमति लेना पड़ती है। यह राम का देश है या रावण का।
केवल शब्द ही गुरू हैं
संत ‘नागरजी’ ने कहा कि शरीर कभी गुरू नहीं हो सकता, शब्द ही गुरू हैं। शरीर नश्वर है, उसे कभी गुरू मत मानो। जबकि शब्द अखंड व अनन्त हैं, वही आपको संभालेगा। हम आपको राम नहीं, राम के समान बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जब आपमें राम की प्रवृत्तियां होंगी तो खुद ही राम कहलाओगे। भक्ति सागर की ये बूंद मिलकर बर्फ बन जाती है। आप यहां जाति-धर्म या संप्रदाय से उपर केवल ईश्वरीय आत्मा हो, जिससे परमात्मा के तार जुडे रहते हैं। इसलिए संस्कृति में व्यक्ति पूजा छोडकर ईश्वर पूजा पर ध्यान दो।
‘मुसाफिर यूं क्यों भटके रे..’
प्र्रवचनों के बीच में उन्होने ‘मुसाफिर यूं क्यो भटके रे, ले हरि का नाम, काम कभी न अटके रे..’ भजन सुनाकर पांडाल में भक्ति की लहर छोड़ दी। मार्मिक राजस्थानी भजन ‘सासरिया री बात पीहर में कहता जाजो री..पीहरिया में सुख घणो देख्यो, अब दुखडो सह्यो न जाये..’ पर महिलाएं भावुक हो उठीं। विराट भागवत कथा का मंगलवार को समापन होगा।