अंतिम सोपान: दिव्य संत पं.कमलकिशोरजी नागर की श्रीमद् भागवत कथा में अंतिम दिन उठी भक्ति की हिलौरें।
न्यूजवेव @ सुुुनेल/कोटा
सरस्वती के वरदपुत्र संत पं.कमलकिशोरजी नागर ने मंगलवार को विराट श्रीमद् भागवत कथा के समापन में कहा कि जिनका हृदय बड़ा रहता है, वहीं परमात्मा रहता है। भक्ति का रंग जिन पर चढ़ता है, उतरता नहीं है। उन्होंने कहा कि एक भक्त ने नदी पर स्नान करते हुए मगरमच्छ देख उसे प्रणाम किया, उसने कहा नदी मुझसे बड़ी है, मैं उसमें रहता हूं। नदी ने सागर को, सागर ने आकाश को व आकाश ने परमात्मा को नमन करने को कहा। परमात्मा ने कहा कि मैं मनुष्य के हृदय मे रहता हूं। यहां से ध्यान शुरू किया, जिसमें परमात्मा के दर्शन किए। जिसका हृदय वासनारहित निर्मल हो और भक्ति के दरवाजे खुले हों, वहां द्वारिकाधीश अवश्य आते हैं।
खचाखच भरे पांडाल में उन्होने कहा कि एक हाथ से इस तरह दान दो कि दूसरे को पता नहीं चले। अच्छे कार्य गुप्त रखने से भक्ति पुष्ट होती हैं। उन्होंने कहा कि खुद हंसना लेकिन जमाना आप पर हंसे, ऐसा कोई कार्य मत करना। आज बच्चे पढ़-लिखकर बाहर निकल जाते हैं लेकिन बीमार माता-पिता को भूल रहे है। वे बेहाल होने से बच जाते हैं, जब अपने वाले अपनों से हाल पूछते हैं। उन्होंने कथा आयोजक राधेश्याम हेमलता गुप्ता को इस पवित्र कार्य के लिए आशीर्वाद दिया।
अष्टांग योग से ध्यान करो
संत ‘नागरजी’ ने कहा कि अष्ट दलन से भक्ति ईश्वर से साक्षात कराती है। रोज ईश्वर के आठ अंगों चरण दल, नाभि, हृदय,भुजा, मुखारविंद, नेत्र दर्शन, भृकुटि व मस्तक से उनके सर्वांग दर्शन करने का अभ्यास करें। इससे ईष्टबल मजबूत होगा। हम सगुण भक्ति करें, उससे गुण बने रहेंगे। निर्गुण भक्ति कठिन है, वह गुणरहित होने पर ही मिलेगी।
गाय की जगह कुत्ते पाल रहे हैं
उन्होंने कहा कि आज हमारे कर्मो से गायें कष्ट पा रही हैं। पाप की कोई पेटी नहीं होती, इसलिए हमारे सारे पाप गौमाता ने ले लिए, इसलिए हम सुखी हैं। अपने पापों को भोगो या भजो। गायों के लिए माला फेरें कि तेरे कष्ट दूर हो जाएं। दुर्भाग्य से आज घरों मे गाय की जगह कुत्ते पाले जा रहे हैं।
‘कन्यादान’ व ‘अभयदान’ का संकल्प लें
संस्कृति में आ रही गिरावट पर उन्होने छोटी लड़कियों से कहा कि आज वे संकल्प लें कि मैं माता-पिता को कन्यादान करने का अवसर अवश्य दूंगी। दूसरे, बेटे मन में संकल्प करें कि बहिन-बेटी मेरी निष्ठा से अभय हो जाएं। मेरे कारण उनको कोई कष्ट नहीं होगा। इस अभयदान के संकल्प से छेड़छाड़ की घटनाएं रूक सकती हैं। ये दो संकल्प कई परिवारों में खुशहाली ला सकते हैं।
धन को ताले से मुक्त करो
उन्होने कहा कि तन को कभी घर में मत रखना, धन को ताले में मत रखना और मन को कभी विषयों में भटकने मत देना। जिसका धन ताले में नहीं रहेगा, वो अच्छी जगह लग जाएगा। जो ताले में रहे, वह जेल है, इसलिए हम भी अच्छे कर्मों से जुडकर तालों से बचें और धन को खुला रखकर तालों में बंद होने से बचाएं। खुला धन की आपसे पुरूषार्थ करवाएगा। ताले का पैसा एक समय बाद अशुद्ध हो जाता है।
हाय-हाय बंद, हरि-हरि शुरू करें
उन्होंने कहा कि सत्संग में आने-जाने से द्वारिकाधीश से संबंध मजबूत होते हैं। ‘पलंग के चार पाये हैं, आपके सिरहने मौत हंसती है, संभलकर ले चलो भाइ, मेरा हरि से नाता है..’ भजन सुनाकर उन्होंने कहा कि हम भगवान को याद करें, उससे बडा यह है कि भगवान हमें याद करे। जिनको उसकी ‘याद’ आती है, वो उन पर ‘दया’ करते हैं। इसलिए अपने घरों में हाय-हाय बंद करके हरि-हरि कहना शुरू कर दें।
उन्होने कहा कि आज एक कुर्सी पाने के लिए जगह-जगह भागमभाग मची है लेकिन परमात्मा को पाने के लिए कितने लोग स्वतः आगे आ रहे हैं। कलियुग में नेत्रहीन कहीं गिरे तो चर्चा होती है, अंधा गिर गया है लेकिन दोनों आंख वाला गिर जाए तो कोई चर्चा नहीं करता है। हम रोज मंदिर में एक बार भी मुश्किल से जाते हैं लेकिन शौचालय में बार-बार जाना पडे़ तो समय निकाल लेते हैं।