स्टार्टअप : युवा आर्किटेक्ट कनुप्रिया रानीवाला ने पहले आर्ट स्टूडियो खोला। फिर ब्लॉग लिखते हुए टूरिज्म में नई उंचाइयों को छुआ।
न्यूजवेव, कोटा
शहर के मॉडर्न स्कूल से 12वीं साइंस की पढ़ाई पूरी कर कनुप्रिया रानीवाला ने गुजरात से बीआर्क डिग्री पूरी की। कहीं जॉब करने की बजाय उसने लीक से हटकर एडवेंचर में अपनी रूचि का क्षेत्र चुना। प्रकृति से लगाव इतना रहा कि उसने गंगटोक जाकर पवर्तों पर ट्रेकिंग करना शुरू कर दिया। वहां रहकर जब सिक्किम के सुदूर गांवों में घूमने का मौका मिला तो नजरिया बदल गया।
वहां की संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य से प्रभावित उसने आर्किटेक्ट में नई संभावनाओं को तलाशा।अपनी कल्पना से पहले वहां 3 वर्ष तक आर्ट स्टूडियो खोला। इसमें 200 से अधिक स्टूडेंट्स को वह बी आर्क एग्जाम की तैयारी के साथ टूर गाइड के रूप में प्रेक्टिकल लर्निंग दी। हिल्स पर 10-10 दिन के ट्रेक पर वह ट्रिप लीडर बनकर जाती है।
एडवेंचर और ट्रेकिंग मे रूचि होने से 2015 मेें उसने 5 सदस्यों की टीम के साथ सिक्किम में 5500 मीटर उंची ‘गोएच-ला’ हिल्स पर चढ़ाई की। इसे कंचनजंगा गुफा का गेट-वे कहा जाता है। यहां दर्शनीय ‘ग्रीन लेक’ भी है। 10 दिन के कैम्प में पर्यटक यहां आते हैं। हिमालय की वादियों में गुजारे पलों को वह ब्लाग ‘ऑल इंडिया परमिट’ पर निरंतर लिखती है।
सिक्किम का कल्चर सबसे अलग

उसने बताया कि उंची पहाडि़यों पर प्राकृतिक सौंदर्य हर सुबह नई उर्जा और नई दिशा दिखाता है। हम उसमें जो चाहे ढूंढ सकते हैं। सिक्किम में घूमते हुए उसे वहां के गावों का कल्चर सबसे अलग दिखा।
उसका कहना है कि वहां कॉमर्शियल टूरिज्म जैसा कुछ भी नहीं है। प्रत्येक गांव में स्टे-होम होते हैं, जहां पर्यटक ठहर सकते हैं। शहरी संस्कृति से दूर उनके बीच जाकर आप सुकून महसूस करते हैं। उसने वहां के लोगों के अनुभव जानने के लिए नेपाली भाषा सीख ली। वह जुम्बा फिटनेस ट्रेनर होने के साथ इंस्टीटयूट ऑफ होटल मैनेजमेंट में गेस्ट लेक्चरर भी है।
कनुप्रिया का कहना है कि हिमालय की पर्वत श्रंखलाओं में घूमना एक तितली की तरह है, जिसे किसी मौसम में ऑन या ऑफ बटन की जरूरत नही होती। हम घर से दूर ऐसी जगह जाकर कल्पनाओं से बाहर के पलों को जी सकते हैं। कनुप्रिया के पापा महावीर रानीवाला और मां सर्वेश्वरी वर्षों से कोटा में मूक-बधिर स्कूल संचालित कर रहे हैं।
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