Saturday, 27 April, 2024

मेड़तवाल (वैश्य) समाज में आस्था की डोर बनी तुलादान परंपरा

श्रीफलौदी सेवा सदन के लोकार्पण व सम्मान समारोह में तुलादान टीम का सम्मान
न्यूजवेव @ रामगंजमंडी

अखिल भारतीय मेड़तवाल वैश्य समाज की तीर्थनगरी श्री फलौदी माता मंदिर में पूजा-अर्चना अनुष्ठान हेतु प्रारंभ की गई तुलादान परंपरा सामाजिक एकजुटता का पर्याय बन गई है। खैराबाद में छप्पनभोग स्थल पर नवनिर्मित श्री फलौदी सेवा सदन के लोकार्पण एवं सम्मान समारोह में अतिथियों ने तुलादान टीम के सदस्यों को सम्मानित किया।
मंदिर श्री फलौदी माताजी महाराज समिति के राष्ट्रीय महामंत्री भंवरलाल सिंगी ने बताया कि कोरोना महामारी के दौरान लोकडाउन अवधि में मंदिर पर दर्शन व्यवस्था बंद होने से देशभर से श्रद्धालु फलौदी माता के दर्शन लाभ नहीं ले पा रहे थे। इस अवधि में जागरूक समाजबंधुओं ने परिवारों में जन्मदिन, वैवाहिक वर्षगांठ, गृहप्रवेश, पुण्यतिथी आदि अवसरों पर मां फलौदी के लिये तुलादान करने की परम्परा सोशल मीडिया पर प्रारंभ की। जिससे बडी संख्या में समाजबंधु जन्मदिन एवं शुभअवसरों पर तुलादान कर एक-दूसरे को वाट्सअप पर बधाई देने लगे। देशभर में रहने वाले समाजबंधु एक संयुक्त कुटुम्ब की तरह मिलनसारिता, अपनत्व और आस्था की डोर में एकजुट होकर एक-दूसरे के सुख-दुख में सहभागी भी बन गये।


समाज के पूर्व महामंत्री गोपालचंद गुप्ता बारवां वाले ने बताया कि सम्मान समारोह में समाजबंधुओं ने तुलादान टीम से जुडे़ बबलू गुप्ता, अकलेरा, राजेश गुप्ता, भोपाल, विकास करोडिया, पचौर, मूलचंद गुप्ता, झालावाड, कमलेश गुप्ता कालीपीठ वाले, दिलीप गुप्ता जुल्मी वाले, डीडी गुप्ता ब्यावरा, पंकज भानेज व नीतेश सिंगी, खिलचीपुर, अमित गुप्ता डायमंड, इंदौर, संजय गुप्ता खारपा वाले, इंदौर सहित टीम के सभी सदस्यों को शॉल व सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया।


मंदिर व्यवस्था संयोजक मोहनलाल चौधरी एवं कोषाध्यक्ष बालमुकुंद गुप्ता ने बताया कि श्रीफलौदी सेवा सदन के लोकार्पण समारोह में मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं अन्य प्रदेशों से सहयोग करने वाले 200 से अधिक दानदाताओं को समाजश्री, समाजरत्न, भामाशाह एवं सेवा सारथी आदि सम्मान से सम्मानित किया गया।
क्या है तुलादान परंपरा

पौराणिक काल में सम्पन्न वर्ग सोना से तुलादान किया करते थे। बाद में वजन के बराबर अनाज और सिक्कों से तुलादान होने लगा। आजकल अपने या परिजनों के जन्मदिन, पुण्यतिथी, वैवाहिक वर्षगांठ, गृहप्रवेश आदि पर श्रद्धालु ईष्ट देवता को तुलादान राशि भेंट कर खुशहाली की कामना करते हैं। कहा जाता है कि प्रयाग में ब्रह्मा ने भगवान विष्णु के कहने पर तीर्थों का महत्व तय करने के लिए तुलादान करवाया था। इसमें सभी तीर्थ एक तरफ और प्रयाग को तुला के दूसरी तरफ बैठाया गया था। मान्यता है कि मकर संक्रांति पर किए गए दान का फल सौ गुना होता है। शास्त्रों के मुताबिक तुलादान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए मकर संक्रांति पर लोग अपने भार के बराबर अनाज दान करते हैं। पवित्र स्नान के बाद किया जाने वाला तुलादान, ग्रह शांत करता है, परिवार के संकट एवं बाधाएं शांत होती हैं।

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