यूएसए व इटली में सर्जिकल मास्क की कमी से जूझते रहे नागरिक, भारत ने स्वदेशी विकल्प को चुना
न्यूजवेव@ कोटा
कोेरोना वायरस की वैश्विक महामारी से बचाव के लिये सोशल डिस्टेसिंग रखते हुये संक्रमण रोधी मास्क, ग्लोव्स और प्रत्येक 20 मिनट में सेनिटाइजर अथवा साबुन से हाथ धोने के लिये चिकित्सकीय सलाह दी जा रही है। 135 करोड़ की आबादी वाले भारत में सारी जनता को तुरंत सर्जिकल मास्क उपलब्ध करवाना असंभव सा था। ऐसे में विशेषज्ञों ने सलाह दी कि मल्टी लेयर सर्जिकल मास्क या एन-95 सिर्फ स्क्रीनिंग टीम या आइसोलेशन वार्ड में डॉक्टर्स व चिकित्साकर्मियों के उपयोग के लिये हैं जो सीधे पॉजिटिव रोगियों की देखरेख में रहते हैं। शेष जनता सामान्य मास्क का उपयोग कर सकती है।
शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक शारदा ने बताया कि आम जनता सामान्य तौर पर सूती कपडे़ से बने मास्क, रूमाल, स्कार्फ, दुपट्टा, अंगोछा या किसी दो तक के कपडे़ से मुंह को ढककर बाहर निकलें तो उनको किसी संक्रमण से प्रभावित होने का प्रारंभिक खतरा नहीं रहता है। देश की आधी आबादी जुगाड़ की इस तकनीक को अपनाकर सुरक्षित है।
जोखिम का खतरा 65 प्रतिशत कम हुआ
अग्रसेन हॉस्पीटल के डॉ. विवेक भाटिया ने बताया कि विकसित देशों में सर्जिकल मास्क पहनने की होड़ मच गई लेकिन इनकी कमी होने से काफी नागरिक इससे वंचित रह गये, जिससे वे तेजी से संक्रमित लोगों की ड्रॉपलेट के संपर्क में आ गये। जबकि हमारे देश में हर चीज का जुगाड़ पहले ढूंढ लिया जाता है। कोरोना महामारी के दौर में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में हाथ से सिले हुये मास्क, रूमाल, अंगोछा या दुपट्टा आदि से मुंह बांधने से लोगों को 65 प्रतिशत खतरा कम हो गया है। सर्जिकल मास्क की डिमांड अधिक होने से गांवों तक इसकी आपूर्ति होने में समय लग सकता है। ऐसे में स्वदेशी होममेड मास्क ही बेहतर व सुरक्षित विकल्प साबित हो रहे हैं।
एक ओर राज्य सरकार ने एहतियात के तौर पर प्रत्येक नागरिक को मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया है। साथ ही यह छूट भी दी गई है कि वे चाहें तो सूती कपडे़ के हाथ से बने मास्क या रूमालख् दुपट्टा आदि का उपयोग भी कर सकते हैं। सच्चाई यह है कि प्रदेश की 50 प्रतिशत आबादी इन दिनों जुगाड़ के मास्क से अपनी सुरक्षा कर रही है। इससे छींकने या खांसने वालों से कारगर बचाव हो रहा है। दूसरी ओर, इससे सर्जिकल मास्क व एन-95 की कमी का संकट पैदा नहीं हुआ।
एक से डेढ़ मीटर की दूरी रखें
एम्स, नईदिल्ली की डॉ. पद्मा श्रीवास्तव ने बताया कि बाहरी वातावरण सक्रंमित रोगी के छींकने या खांसने पर 5 माइक्रोन के सूक्ष्म कण एक से डेढ मीटर की दूरी तक सतह पर बने रहते हैं। ऐसे में सोशल डिस्टेसिंग की जागरूकता सबसे अधिक जरूरी है। होममेड मास्क सुरक्षा के लिये बेहतर विकल्प है। लॉकडाउन अवधि में लोग भीड़ में जाने से बचें।