Thursday, 12 December, 2024

स्कूली छात्रा सन्दरा ने अकेले बोट से पहुंचकर परीक्षा दी

~ नीयत नेक थी इसलिए भविष्य को नियति पर नहीं छोड़ा, कोरोना की चुनोती से हार नही मानी

न्यूजवेव @ अर्नाकुलम
संदरा बाबू 11 वी में पढ़ती है। वो केरल के अलपुझा में रहती है। लोकडाउन में जिंदगी ठहर सी गई थी । जिससे उसके सामने संकट खड़ा हो गया। इम्तिहान सिर पर था और परीक्षा केंद्र कोट्ट्याम जिले में था। आवागमन के लिए सिर्फ बोट चलती है। उसे लगा उस अकेली के लिए बोट कैसे चलेगी।
छात्रा संदरा बाबू ने केरल के जल परिवहन निगम से सम्पर्क साधा। अधिकारी मदद के लिए तैयार हो गए। निगम का बोट 70 सीटों का है। उसका किराया 4 हजार रूपये है। लेकिन निगम ने उससे सिर्फ 18 रूपये लिए। जब तक परीक्षा चली, संदरा उस बोट से रोज अपने परीक्षा मकाम तक पहुंचती रही।

*दिहाड़ी मजदूर की बेटी ने दिखाया जज्बा*


उसके पिता दिहाड़ी मजदूर है। वे बेटी को पढ़ा रहे है। बेटी उतनी ही मेहनत से पढ़ भी रही है।
जल परिवहन निगम ने बोट के साथ पांच कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई। निगम के निदेशक वी नायर कहते है ‘ जैसे ही हमे पता चला हमने व्यवस्था कर दी। सरकार तुरंत तैयार हो गई। कहने लगे मेरी बेटी भी ऐसे ही पढ़ती है। केरल का यह इलाका प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मशहूर है। सैलानी वहां साँझ ढले डूबते सूरज का मनोहारी मंजर देखने आते है। लेकिन उस दिन अलपुझा ने एक बेटी को सूरज की मानिंद उदित होते हुए देखा।
कुछ ऐसे लोग भी है ‘बेटा न हो तो जिंदगी अधूरी है ,बेटी तो महज मजबूरी है ‘। बेटी पैदा होने की खबर से मायूसी होती है लेकिन जब पापा पीड़ा में हो तो बेटी अपने पिता को साइकिल पर बैठा कर 1200 किमी तक ले जाती है। कुछ कहानिया उम्रदराज लोगो के आश्रम में भी सुनाते है।
कुछ अरसा पहले जापान ने बंद पड़े एक रेल स्टेशन तक इसलिए ट्रैन चलाये रखी। क्योकि एक स्कूली छात्रा अपने स्कूल के लिए जाती थी। वो अकेली मुसाफिर होती थी। जापान ने इसमें नफा नुकसान नहीं देखा। जब तक छात्रा को जरूरत थी ,रेल चलती रही। जापान उगते सूरज का देश है।


केरल को Gods own country यानि भगवान की धरती कहते है। केरल बहुत सारे मानकों में कई राज्यों से बेहतर है। केरल ने जिस तरह कोरोना संकट से निबटने के उपाय किये, उसकी खूब सराहना की गई। इस सिलसिले में उसे पोस्टर बॉय कहा जाता है। केरल की के के शैलजा स्वास्थ्य मंत्री के रूप में खूब सराही गई।
बेटियां ओस सी नाजुक होती है। वक्त जब किसी समाज को तरक्की के तराजू पर तौलता है तो वो शॉपिंग माल, आलीशान इमारते और लक्जरी गाड़िया नहीं देखता, वो अपने पलड़े में यह जरूर देखता है कि समाज ने एजुकेशन पर कहां और कितना निवेश किया है। बेटा प्राइवेट स्कूल में, उसी घर की बेटी सरकारी स्कूल में । एक घर का चिराग है, एक पराया धन।

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