Thursday, 12 December, 2024

भारतीयों के भोजन में कम हो रही है जिंक की मात्रा

रिसर्च : हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है जिंक, 8.2 करोड़ लोग जिंक की कमी के शिकार

अमलेन्दु उपाध्याय
न्यूजवेव @  नईदिल्ली

हमारे आहार में जिंक जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व की मात्रा बेहद जरूरी है। इसकी लगातार कमी से कई बीमारियां हो सकती है। भारतीय और अमेरिकी शोधकर्ताओं की एक ताजा स्टडी में लोगों में जिंक की कमी होने की बात सामने आई है। यह अध्ययन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑप पब्लिक हेल्थ, नई दिल्ली, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस, हैदराबाद और अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय एवं हार्वर्ड टीएच चौन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने मिलकर किया है।
स्टडी के अनुसार, 1983 में भारतीय लोगों के आहार में अपर्याप्त जिंक के सेवन की दर 17 प्रतिशत थी जो 2012 में बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई। अर्थात इस दौरान 8.2 करोड़ लोग जिंक की कमी के शिकार हुए हैं।

कमी से मलेरिया, निमोनिया और दस्त का खतरा

जिंक के अपर्याप्त सेवन की दर चावल का ज्यादा उपभोग करने वाले दक्षिण भारतीय और पूर्वोत्तर राज्यों, जैसे- केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मणिपुर और मेघालय में अधिक देखी गई। इसके पीछे चावल में जिंक की कम मात्रा को जिम्मेदार बताया जा रहा है। जिंक शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसीलिए, जिंक के अपर्याप्त सेवन से स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं। इसकी कमी से छोटे बच्चों के मलेरिया, निमोनिया और दस्त संबंधी बीमारियों से पीड़ित होने का खतरा रहता है। भोजन में जिंक की मात्रा कम होने का कारण भारतीय लोगों के आहार से जौ, बाजरा, चना जैसे मोटे अनाजों का गायब होना भी जिम्मेदार है। इसके अलावा, पैकेजिंग में मिलने वाले चोकर रहित आटे का उपयोग भी जिंक के अपर्याप्त सेवन से जुड़ा एक प्रमुख कारण है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अत्यधिक मात्रा में कार्बन उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग फसलों में जिंक की मात्रा को प्रभावित कर सकती है। कार्बन डाइऑक्साइड का लगातार बढ़ता स्तर कुछ दशकों में 550 पीपीएम तक पहुंच सकता है, जिससे फसलों में जिंक की कमी हो सकती है। इसके साथ ही, खाद्य पदार्थों से कई महत्वपूर्ण पोषक तत्व और रेशे गायब हो सकते हैं।

औसत भारतीय में जिंक की आवश्यकता 5 % बढी

केलीफोर्निया विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर स्टीवन डेविस ने अपने अध्ययन में पाया कि जीवाश्म ईंधन का दहन और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन ऐसे ही जारी रहा तो मानव जनित ग्लोबल वार्मिंग से पैदा भीषण सूखे और गर्मी के कारण जौ की फसल की पैदावार में तेजी से गिरावट हो सकती है। शोध में बताया कि प्रजनन क्षमता में कमी के चलते भारत में जनसांख्यिकी बदलाव होने से बच्चों की अपेक्षा वयस्कों का अनुपात बढ़ा है। वयस्कों की जनसंख्या बढ़ने से औसत भारतीय के लिए जिंक की आवश्यकता 5 % बढ़ गई है क्योंकि वयस्कों को बच्चों की तुलना में अधिक जिंक की आवश्यकता होती है।
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता स्मिथ एम.आर.के मुताबिक,भारत में भोजन में जिंक की मात्रा बढ़ाने की तरफ ध्यान देना ज्यादा जरूरी है। इस स्टडी में स्मिथ एम.आर. के अलावा कोलंबिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ता रूथ डेफ्रीज, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के अश्विनी छत्रे और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के मेयर्स एस.एस. शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर)

(Visited 286 times, 1 visits today)

Check Also

राजस्थान में 13 नवंबर को होगी गौ विज्ञान परीक्षा

सरसंघचालक डॉ मोहन राव भागवत ने किया पोस्टर विमोचन, 16 लाख से अधिक विद्यार्थी भाग …

error: Content is protected !!