विश्व किरेटोकोनस दिवस (10 नवम्बर) पर सुवि नेत्र चिकित्सालय में जागरूकता परिचर्चा
न्यूजवेव@कोटा
यदि आप बार-बार आंखें (Eyes) मसलते हैं तो आंखों में किरेटोकोनस (Keratoconus) रोग की चपेट में आ सकते हैं। नेत्र विशेषज्ञों के अनुसार, किरेटोकोनस पीड़ित रोगियों में चश्मे का तिरछा नम्बर धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है एवं चश्मा लगाने के बाद भी स्पष्ट नहीं दिखाई देता है, जिससे उन्हें पढ़ने-लिखने, रोजमर्रा का कार्य करने एवं वाहन चलाने में बहुत परेशानी होती है।
सुवि नेत्र चिकित्सालय एवं लेसिक लेजर सेन्टर में विश्व किरेटोकोनस दिवस की पूर्व संध्या पर बुधवार को जागरूकता बढाने के लिये परिचर्चा हुई जिसे वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ. सुरेश पाण्डेय, डॉ. एस.के. गुप्ता, एवं डॉ.दीपेश छबलानी ने संबोधित किया।
निदेशक एवं वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ.सुरेश पाण्डेय ने बताया कि किरेटोकोनस आँख की पारदर्शी पुतली (कॉर्निया) में होने वाली विशेष प्रकार की बीमारी है, जिसमें कॉर्निया का आकार में उभार (कॉनिकल शेप) आ जाता है। यह रोग सामान्यतः 14 से 22 वर्ष की आयु वर्ग में 3000 में से 1 व्यक्ति को हो सकता है। इसका ठोस कारण अज्ञात है।
नेत्र विशेषज्ञ डॉ. एस.के. गुप्ता ने कहा कि नेत्र एलर्जी से पीड़ित आँखों को मसलने वाले व्यक्ति, डाउन सिन्ड्रोम से पीड़ित व्यक्ति एवं वंशानुगत किरेटोकोनस पीड़ित व्यक्तियों की संतानों को यह रोग हो सकता है एवं आँखों को मसलने से बढ़ सकता है। लगभग 90 प्रतिशत व्यक्तियों की दोनों आँखों को यह प्रभावित करता है।
नेत्र विशेषज्ञ डॉ. दीपेश छबलानी ने बताया कि किरेटोकोनस रोगी आँख रगड़ने (मसलने) से बचें। स्टेराइड आई ड्रॉप का लम्बे समय तक प्रयोग नहीं करें। किरेटोकोनस रोगी को अस्पष्ट दिखाई देता है। इन रोगियों की प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है एवं पढ़ने-लिखने हेतु आँखों पर बहुत जोर डालना पड़ता है। इन रोगियों का आर. जी. पी. कॉन्टेक्ट लैंस, कॉर्नियल कॉलिजन क्रॉस लिकिंग विद राइबोफ्लेविन (C-3 R), इम्पलान्टेबल टोरिक कॉन्टेक्ट लैंस (ICL), इन्ट्रास्ट्रोमल कॉर्नियल रिंग सेग्मेन्ट (केरा रिंग्स) अथवा टोरिक इन्ट्राऑकुलर लैंस प्रत्यारोपण नामक नवीनतम तकनीकों द्वारा उपचार किया जाता है। नेत्र चिकित्सकों ने रोगियों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर भी दिए।