एक देश-एक विधान: धारा 370 हटाने से जम्मू-कश्मीर में लहरायेगा राष्ट्रध्वज तिरंगा
न्यूजवेव @नईदिल्ली
1947 से भारतीय संविधान की धारा 370 विवादों का केंद्र ब्रिदु रही, जिसने जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान किया। इसी धारा के कारण जम्मू-कश्मीर कभी भारत की मुख्य धारा से नहीं जुड़ सका। वहां अलगाव की आग झुलसती रही, जिससे प्रकृति का स्वर्ग माने जाने वाले कश्मीर में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य टूरिज्म और विकास के मुद्दे हिंसक आंदोलनों में कुचलते रहे। आम कश्मीरी नागरिक आज भी वहां सुकून का माहौल चाहते हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार ने 5 अगस्त को एतिहासिक निर्णय लेते हुये जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प प्रस्ताव सदन में रखा। सोमवार को राज्यसभा ने विधेयक पारित कर दिया। राज्यपाल की अनुशंसा के बाद महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसे हटाने की अनुमति देकर अधिसूचना जारी की दी है। इसके पश्चात् केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य सभा में यह प्रस्ताव रखा। इसके अनुसार, राज्य पुनर्गठन विधेयक में जम्मू-कश्मीर व लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाना शामिल है।
आजादी के बाद से इस धारा को हटाने के मुद्दे पर राष्ट्रीय बहस होती रही लेकिन चुनींदा राजनीतिक दलों ने इसी धारा के चलते जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानने की बजाय पृथक राज्य का दर्जा बनाये रखने के लिये अंतराराष्ट्रीय मंचों पर मुद्दा बनाने की कोशिश की। धारा-370 के बारे में वे तथ्य जो हर भारतीय नागरिक को जानना चाहिए-
ऐसे लागू हुई थी धारा-370
सन् 1947 में आजादी के समय जब भारत का विभाजन हुआ तो अंग्रेजों ने रजवाड़ों को स्वतंत्र कर दिया था। उस समय जम्मू-कश्मीर के राजा हरिसिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे। उन्होंने भारत में विलय होने का विरोध किया। उस समय सभी अन्य राज्य जो रजवाड़े के अन्दर आते थे उन्होंने भी भारत देश में विलय का छुटपुट विरोध किया लेकिन लौहपुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल के भय से सब भारत में मिल गए। मगर कश्मीर का मामला जवाहरलाल नेहरु ने अपने हाथ में ले लिया और सरदार पटेल को इस मुद्दे से अलग रखा। उस समय नेहरु और शेख अब्दुल्ला के बीच समझौता हुआ और जम्मू-कश्मीर की समस्या शुरू हो गयी।
जम्मू-कश्मीर में पहली अंतरिम सरकार बनाने वाले नेशनल कॉफ्रेंस नेता शेख अब्दुल्ला ने भारतीय संविधान सभा से बाहर रहने की पेशकश की थी। इसके बाद भारतीय संविधान में धारा 370 का प्रावधान किया गया जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार दिया गया। 1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से बुलाने की अनुमति दी गई। तब से 5 अगस्त,2019 तक विशेष दर्जे के अंतर्गत सारा बजट केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को देती रही लेकिन वहां भारतीय संवैधानिक अधिकारों का निरंतर उल्लंघन होता रहा।
धारा -370 से मिल रही थी ये सुविधायें-
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जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को दोहरी नागरिकता मिलती है- एक जम्मू-कश्मीर की, दूसरी भारत की।
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जम्मू-कश्मीर का अपना अलग राष्ट्रध्वज होता है। तिरंगा वहां राष्ट्रध्वज नहीं था।
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जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष है, जबकि भारत की अन्य सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष है।
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यदि आप जम्मू-कश्मीर मे जाकर भारतीय तिरंगे का अपमान कर देते हैं तो इसे अपराध नहीं माना जाता।
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भारत के उच्चतम न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते।
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भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्व या मूल कर्तव्य जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होते हैं।
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भारतीय संसद जम्म-कश्मीर के सम्बन्ध में सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है। कई विषयों से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए।
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जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी ।
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धारा 370 के चलते कश्मीर में आरटीआई तथा आरटीई लागू नहीं है। सीएजी भी लागू नहीं होता। भारत का कोई भी कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होता।