Saturday, 19 April, 2025

ठाकुरजी के भक्त चिंता नहीं, सदैव हरि चिंतन करते हैं – संत चिन्मय दास

पिप्पलेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित श्री भक्तमाल कथा में बुधवार को वृंदावन के श्री हित हरिवंश महाप्रभु का पद सहित चरित्र वर्णन किया।
न्यूजवेव @ कोटा

भगवान पिप्पलेश्वर महादेव मंदिर के पाटोत्सव पर आयोजित श्री भक्तमाल कथा में बुधवार को वृंदावन के संत चिन्मयदास महाराज ने कहा कि सनातन धर्म में एक ही ज्योति दो स्वरूप में आलोकित है। एक श्याम वर्ण में दूसरी गोर वर्ण में। कथा-सत्संग में समर्पित भाव से जो एक बार राधा कृष्ण के दर्शन पा लेते हैं, उनका जीवन धन्य हो जाता है। ठाकुरजी के भक्त चिंता नहीं करते, वे सदैव हरि चिंतन करते हैं।
उन्होंने वृंदावन के रास बिहारी का पद ‘मैं तो भगवन को दास, भक्त मेरे मुकुट मणि’ सुनाया तो श्रद्धालु झूमते हुये भाव विभोर हो उठे। ठाकुरजी कहते हैं, ‘अहम भक्तम पराधीन’ अर्थात् मैं भक्तों के अधीन हूं। महाराज ने हित हरिवंश महाप्रभु का प्रसंग सुनाते हुये उन्होंने कहा कि भगवान अपने भक्त के चरित्र को सुनने के लिये विकल रहते हैं। हरवंश के पिता व्यास मिश्र व मां तारा रानी बांके बिहारी के परम भक्त रहे। मथुरा से 5 मील दूर बाधग्राम में उनको पुत्र हरि वंश का जन्म हुआ। वे 6 माह बाद देववन आकर ठाकुरजी की सेवा में लीन रहे। हरिवंश में बचपन से दिव्यता दिखने लगी। वे मित्रों के साथ भी ठाकुरजी की सेवा के खेल खेलते थे।
भक्त की परीक्षा लेते हुये ठाकुरजी ने हरिवंश से कहा, मुझे तीन चीजें प्रिय हैं- भोग, श्रंगार और राग। भोग व श्रंगार तो माता-पिता ने कर दिया तुम राग अर्थात पद सुनाओ। इस पर हरिवंश रात भर सुंदर पद ‘आज गोपाल रास रस खेलत…’ गाते रहे। प्रिया-प्रियतम भी सिंहासन से उतरकर नृत्य करने लगे। ठाकुरजी ने प्रसन्न होकर गले का हार और राधा ने चुनरी हरिवंश को पहना दी। रास नृत्य के बीच माता-पिता पहुंचे तो ठाकुरजी विग्रह में आ गये। ऐसा कई बार हुआ तो वे समझ गये कि कुंज बिहारी हरिवंश को अपना मान चुके हैं। हरिवंश ने झूमते हुये गाया- हमारे तो दो ही रिश्तेदार, एक राधा रानी, दूजे बांके बिहारी सरकार।
प्रभू दर्शन के लिये कीर्तन है माध्यम
महाराज ने कहा कि आज के माता-पिता संतानों को कथाओं व सत्संग से इसलिये दूर रखते हैं कि बच्चे कहीं साधू न बन जाये। उनको यह भय नहीं है कि गलत संगत से कहीं वे चोर, डाकू आदि न बन जाये। संसार से हमें कोई सार मिला नहीं, इसलिये प्रभू दर्शन के लिये अब कीर्तन ही एक माध्यम है। भगवान कण-कण में बिराजे हैं लेकिन वे भजन में ही प्रकट होते हैं। भक्त बनकर यह सोचें कि चाहे नियरे रहे, चाहे न्यारे रहें, हम सदा तेरे ही गुण गायेंगे। सारे संबंध टूट सकते हैं लेकिन ठाकुरजी से संबंध जोड़ लिये तो 21 पीढ़ी तर जायेगी। प्रवक्ता गिरधर लाल बढेरा ने बताया कि आयोजन समिति के सदस्यों एवं भक्तों ने महाआरती की।
मंदिर समिति के अध्यक्ष भारत भूषण अरोडा ने बताया कि 21 अप्रैल को रात्रि 8 बजे से विराट भजन संध्या आयोजित की जायेगी जिसमें डॉ. संतदास महाराज, श्री द्वारकाधीश मंदिर, वाराणसी एवं एलन निदेशक भजन सम्राट गोविंद माहेश्वरी द्वारा सुमधुर भजनो की भक्तिरस सरिता बहायेंगे।

(Visited 37 times, 3 visits today)

Check Also

नगवा की माटी जो लालों के खून से इतिहास लिखती है

अमर शहीद मंगल पाण्डेय का बलिदान दिवस 8 अप्रैल: एक नेत्र चिकित्सक की नजर से …

error: Content is protected !!