Thursday, 28 March, 2024

JEE-Main ऑल इंडिया रैंकिंग के मापदंडों पर पुनर्विचार हो

आर.के.वर्मा,
बी.टेक (1994 बैच),
आईआईटी, मद्रास

देश में उच्च शिक्षा की तस्वीर देखें तो प्रतिवर्ष 10 लाख से अधिक विद्यार्थी प्रीमियर इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश लेने के लिए जेईई-मेन प्रवेश परीक्षा में शामिल होते हैं,जिनमें तुलनात्मक रूप से सीटें बहुत सीमित होती हैं। जेईई-मेन,2018 में 10,74,319 विद्यार्थी शामिल हुए। जबकि देश के शीर्ष 99 तकनीकी संस्थानों (23 आईआईटी, 31 एनआईटी, 24 ट्रिपल आईटी एवं 21 केंद्र वित्त पोषित तकनीकी संस्थानों) में 649 कोर्सेस की केवल 36,789 सीटें हैं।

सबसे अहम बात यह कि ये 10.74 लाख विद्यार्थी इस महत्वपूर्ण प्रवेश परीक्षा के लिए 2 से 3 वर्ष तक तैयारी करते हैं, अपने बच्चोें की उच्च शिक्षा में प्रवेश परीक्षा की तैयारी पर अभिभावक लाखों रूपए खर्च करते हैं। राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धा होने से परीक्षार्थियों पर मानसिक दबाव भी ज्यादा रहता है।
ऐसी स्थिति में जब सीटें बहुत कम हो और परीक्षार्थी बहुत अधिक हों तब प्रवेश परीक्षा में रैंक का सही तरीके से निर्धारण करना बहुत आवश्यक हो जाता है।

यूनिक रैंकिंग क्यों आवश्यक
किसी भी प्रवेश परीक्षा में रिजल्ट के साथ कॉमन मेरिट सूची एवं केटेगरी के लिए अलग से सूची जारी की जाती है। मेरिट में प्राप्त रैंक के आधार पर विद्यार्थियों को संस्थानों में सीट आवंटित होती है। प्राथमिकता की बात करें तो प्रत्येक संस्थान में बेहतर रैंक वाले विद्यार्थी को उसके द्वारा चुनी गई ब्रांच में सबसे पहले एडमिशन दिया जाता है, शेष रैंक वाले विद्यार्थियों को उसके बाद ही ब्रांच की सीटों के अनुसार प्रवेश दिए जाते हैं।

इसलिए ऑल इंडिया रैंक हमेशा यूनिक होनी चाहिए। दो छात्रों को एक समान रैंक नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि संस्थान में सीट आवंटन के समय दो या अधिक विद्यार्थियों की एक समान रैंक होने पर विद्यार्थी को सीट आवंटन में दिक्कत हो सकती है। जैसे कि किसी एक रैंक पर तीन विद्यार्थी हैं और तीनों ने एक ही कॉलेज में एक ही ब्रांच के लिए समान प्राथमिकता दी है, जबकि सीटें केवल दो ही बची हैं। एक सीट अतिरिक्त नहीं बढ़ाई जा सकती और इन तीनों में से किसी को वंचित भी नहीं रखा जा सकता है।
इस स्थिति को समझते हुए उच्च शिक्षा में रैंकिंग सिस्टम स्पष्ट ढंग से निर्धारित हो तथा प्रत्येक विद्यार्थी को यूनिक रैंक प्रदान की जाए।

वर्तमान अधिकृत रैंकिंग सिस्टम
जेईई-मेन के अधिकृत ब्राशर में इस बात का उल्लेख है कि एक समान अंक होने पर रैंकिंग कैसे निर्धारित की जाती है। बीई या बीटेक में प्रवेश के लिए जेईई-मेन,2018 में दो या अधिक परीक्षार्थियों को एक समान प्राप्तांक मिलने पर एक प्रक्रिया द्वारा मेरिट में उनका क्रम इस तरह निर्धारित किया जाता है-

  • पहला, गणित में अधिक अंक होने पर रैंक में वरीयता
  • दूसरा, भौतिकी में अधिक अंक होने पर रैंक में वरीयता
  • तीसरा, पॉजिटिव व नेगेटिव अंकों के अनुपात को परखकर रैंक में वरीयता
  • यदि तीनों आधार पर समाधान संभव न हो तो ऐसे परीक्षार्थियों को एक समान रैंक दी जाती है।

इस प्रक्रिया में चौथे बिंदु से स्पष्ट है कि समाधान संभव नहीं होने पर परीक्षार्थियों को समान रैंक दे दी जाती है। यह पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि यह सही व न्यायसंगत स्थिति नहीं है जब कई विद्यार्थियों को एक समान रैंक जारी कर दी जाए। इससे सीट आवंटन में विवाद की स्थिति पैदा होती है। इसलिए इस रैंकिंग प्रक्रिया में यथोचित संशोधन किया जाए। दूसरी बात यह कि पहली प्राथमिकता गणित को क्यों ?

जेईई-मेन में विवादित रैंकिंग
जेईई-मेन,2018 में यह मामला तब उभरकर सामने आया जब ऑल इंडिया मेरिट सूची में शीर्ष-6 रैंक को एक समान प्राप्तांक होने पर उक्त प्रक्रिया से अलग-अलग रैंक दी गई।
जेईई-मेन,2018 मेरिट सूची की टेबल को देखकर यह पता लगा सकते हैं कि मेरिट में टॉप-6 विद्यार्थियों को क्या रैंक दी गई, जबकि क्या दी जानी चाहिए थी-

Student

Marks Scored in JEE (Main) 2018

Total   Marks in Right Answers Total Marks  in Wrong Answers Marks  Ratio  Right/ Wrong AIR as per official Criteria Actual  AIR Declared
Maths Physics Chemistry Total
1 120 120 110 350 88 x4 2x-1 176 1 1
2 120 120 110 350 88 x4 2x-1 176 1 2
3 120 115 115 350 88 x4 2x-1 176 3 3
4 120 110 120 350 88 x4 2x-1 176 4 4
5 115 120 115 350 88 x4 2x-1 176 5 5
6 115 120 115 350 88 x4 2x-1 176 5  6

मेरिट सूची में इन सभी बिंदुओं की पड़ताल करने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि घोषित रैंक के लिए कुछ और भी मापदंड का उपयोग किया गया है जो कि ब्रोशर में नहीं दिया गया है, जिससे अन्य रैंक पर भी इसका प्रभाव पड़ा होगा। इसमें कुछ संशोधन कर भविष्य के लिए तार्किक, स्पष्ट, सुदृढ़ एवं पारदर्शी बनाया जा सकता है।

कुछ उपयोगी सुझाव
मौजूदा रैंकिंग सिस्टम को इम्प्रूव करने के लिए तार्किक व स्पष्ट अतिरिक्त मापदंड भी जोड़ दिये जाए। वर्तमान में टाइ ब्रेक करने के लिए गणित व भौतिकी के प्राप्तांक लिए जाते है, जो कि तर्कसंगत नही है। इसके स्थान पर यह किया जा सकता है-

  1. सबसे पहले उस विषय को प्राथमिकता दी जाए जिसमें सभी विद्यार्थियों के अंकों का औसत सबसे कम हों। अर्थात यह विषय परीक्षा में सबसे कठिन रहा।
  2. दूसरी प्राथमिकता में उस अगले विषय को प्राथमिकता दी जाए, जिसमें क्रम-1 के बाद अंकों का औसत अधिक हो। अर्थात यह दूसरा कठिन विषय रहा।
    कुल मिलाकर, प्रवेश परीक्षा में तार्किक, निष्पक्ष व सही मूल्यांकन के लिए पेपर में जिस विद्यार्थी ने कठिन विषय के प्रश्नों को सही हल किया हो, उसे बेहतर रैंक दी जाए।
  3. प्लस व माइनस अंकों का अनुपात जो पहले से जेईई-मेन के ब्रोशर में है।

यदि इस मापदंड के बाद भी टाई हो तो अन्य वैकल्पिक मापदंडों पर गंभारता से विचार किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए-

4. सबसे कठिन प्रश्न को हल करने को प्राथमिकता दी जाए। यह वो प्रश्न होगा, जिसको सबसे कम विद्यार्थियों ने सही हल किया है।
5. इसी तरह, दूसरे सबसे कठिन प्रश्न की तुलना की जाए और इसी क्रम में आगे बढा जाए।

वर्तमान परिपेक्ष में, प्रतिवर्ष लाखों विद्यार्थियों के भविष्य को देखते हुए यह प्रासंगिक होगा कि जेईई-मेन की तरह की अन्य राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं (JEE Advanced, NEET,AIIMS) की रैंकिंग प्रक्रिया में आवश्यक संशोधन कर इसे अधिक तर्कसंगत व न्यायसंगत बनाया जाए। किसी भी तरह के मापदंड जैसे जन्मतिथी आदि का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह तर्कसंगत नहीं है।

(लेखक श्री आर.के.वर्मा, रेजोनेंस एजुवेंचर्स लि.के संस्थापक प्रबंध निदेशक व अकादमिक प्रमुख हैं। उन्होंने तत्थ्यामक उदाहरण के साथ अपने विचार एवं सुझाव दिए हैं, जो विद्यार्थियों के लिए अति महत्वपूर्ण हैं एवं इन प्रतियोगी परीक्षाओं को आयोजित करने वाली संस्थाओं के लिए भी उपयोगी होंगे)

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