पुरुषोत्तम मास महोत्सव : श्री झालरिया पीठ डीडवाना द्वारा सर्वजन कल्याण के लिए श्री रामार्चा महायज्ञ
न्यूजवेव @ तिरुपति
श्री झालरिया पीठ डीडवाना द्वारा तिरुपति बालाजी धाम में कोरलागुंठा स्थित डीबीआर मल्टी स्पेशलिटी रोड पर स्थित श्री कंन्वेंशन सेंटर में सात दिवसीय पुरुषोत्तम मास महोत्सव में शनिवार को श्री रामार्चा महायज्ञ हुआ। श्री झालरिया पीठाधिपति जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्री श्री 1008 परम पूज्य स्वामी श्री घनश्यामाचार्य जी महाराज के पावन सान्निध्य में आयोध्या एवं अन्य विद्वानों ने श्री रामार्चा महायज्ञ विधिविधान से पूर्ण कराया। अंत में यजमानों एवं भक्तगणों को श्री रामार्चा का महात्म्य बताया। भक्तगणों ने श्रद्धापूर्वक श्रीरामार्चा की कथा का श्रवण किया। सभी यजमानों द्वारा भगवान की भव्य आरती उतारी गई। श्रीरामार्चा महायज्ञ में भाग लेने के लिए भारत के विभिन्न शहरों से यजमान तिरुपति पहुंचे। तीसरे दिन पूज्य स्वामी जी महाराज ने बिल्वपत्रों से भगवान का आव्हान किया।
पवित्रकाल में किया पुण्य कई गुना फलदायीः स्वामी श्री घनश्यामाचार्य जी महाराज
शनिवार सुबह लक्षार्चना के बाद श्री झालरिया पीठाधिपति जगद्गुरु रामानुजाचार्य परम पूज्य स्वामी श्री घनश्यामाचार्य जी महाराज यज्ञशाला पहुंचे। वे यजमानों के पास गए और विद्वानों को आवश्यक दिशा-निर्देश भी दिए। उन्होनें यज्ञशाला में यजमानों को आशीवर्चन देते हुए कहा कि पवित्र काल में किया गया पुण्य कई गुना फलदायी होता है लेकिन पुरुषोत्तम मास में किया गया शुभ कार्य भगवान की कृपा के सामर्थ्य से करोड़ों गुना फलदायी हो जाता है। यह स्वयं श्री भगवान का वचन है। पुरुषोत्तम मास में भगवान श्री वेंकटेश रूप में विष्णु भगवान के पूजन का यह अवसर अत्यंत दुर्लभ है।
प्रभु से कुछ मांगना उनसे व्यापार करने जैैसा- पं.सत्यनारायण व्यास
श्री झालरिया पीठ डीडवाना के पुरुषोत्तम मास महोत्सव के तहत शनिवार को श्रीमद् भागवत कथा में महाराष्ट्र के जालना से आए पंडित सत्यनारायण व्यास ने कहा कि याद रखें, सफलता उन्हीं को मिलती है, जो सीधे-सादे होते हैं, उनका मन दुविधा रहित होता है। सभी जानते हैं कि युद्ध से पहले अर्जुन दुविधा में थे। वह अपने मन की शंकाओं के बारे में श्रीकृष्ण से तर्क भी कर रहे थे। जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सही ज्ञान दिया, तब कहीं जाकर अर्जुन का मन शंकारहित हो पाया। यदि हम ईश्वर के निकट जाना चाहते हैं, तो हमें अपने मन के अहंकार का त्याग करना होगा। सरल मन में ही परमात्मा को पा लेने का सुख प्राप्त किया जा सकता है। हम जानते हैं कि भगवान ने दुर्योधन के घर का राजभोग ठुकराकर विदुर के घर का साग खाया था। परमात्मा प्रेम के भूखे होते हैं। हम उनसे अज्ञानतावश कहते हैं कि यदि हमारा काम बन जाएगा, तो मैं आपको लडडू का भोग लगाऊंगा। अपने कार्यो के लिए हम परमात्मा को भी प्रलोभन देते हैं। इससे यही प्रतीत होता है कि परमात्मा हमारे भोग के ही भूखे हैं। हम मंदिर जाते हैं, वहां इंसान यह नहीं कहता है कि परमात्मा मुझे मोक्ष मिल जाए, मुझे शांति मिल जाए। प्रत्येक व्यक्ति प्रभु से यही कहता है कि मेरे कार्य संपन्न हो जाएं। सच तो यही है कि प्रभु से कुछ मांगने का अर्थ उनसे व्यापार करने के बराबर है। ईश्वर की पूजा हम निरूस्वार्थ भाव से करने के बजाए, किसी स्वार्थपूर्ति के लिए करते हैं। सच तो यह है कि प्रभु भाव के भूखे होते हैं।