धर्मसभा: झालावाड में चल रहे श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव के अंतिम सौपान में पहुंचेे एक लाख श्रद्धालु। राष्ट्रगान के साथ वीर सैनिकों को किया सैल्यूट।
न्यूजवेव @ झालावाड
खेल संकुल मैदान में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम सोपान में मंगलवार को गौसेवक संत पूज्य कमल किशोर नागरजी ने कहा कि जीवन में कमाया धन अच्छा है तो उसका अच्छे कार्यों में सदुपयोग करो। ‘यदा-यदा ही धर्मस्य ग्लार्निभवति भारतम्..’ श्लोक सुनाते हुये उन्होंने कहा कि हमें केवल बैंक की पासबुक नहीं, गीता ही जीवन से तारेगी। जब पैसा खराब होगा तो वह बैंकों के तालों में ही बंद रहेगा। हम सक्षम होकर क्लब, पार्टी या संगठनों में सदस्य बन जाते हैं फिर धार्मिक कार्य में आगे क्यों नहीं आते हैं। धार्मिकता और सेवा में भी अग्रणी बनो। हमारे रोम-रोम से पाप हो रहे हैं, इसलिये कथा में साढे़ तीन करोड़ जप करके धनी बनो।
मंगलवार को एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं के सैलाब से खेल संकुल परिसर में वृंदावन जैसा दृश्य दिखाई दिया। दोपहर 12 से 3 बजे तक खचाखच भरे विशाल पांडाल में अनुशासन व शांति के वातावरण में संत कमल किशोर नागरजी ने राजस्थान की भक्ति, शोर्य और दान की धरा को नमन करते हुये कहा कि जिसका धन पुण्य कार्य में लगता है वह धन्य हो जाता है। कथा केवल विश्राम लेती है, कभी पूर्ण नहीं होती है। कथा का अगला श्रंगार मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले के सेमलीधाम आश्रम में 20 दिसंबर से होगा। उन्होंने सभी कृष्णभक्तों को पीले चांवल से न्यौता दिया।
हृदय में चक्रधर को बिठाओ
पूज्य संत नागरजी ने कहा कि मनुष्य जीवन तीन घरों में बीतता है। पहला, छोटी उम्र में पिता का, जवानी में अपना और बुजुर्ग होने पर बेटे का। यदि हमने अच्छे संस्कार दिये तो बेटे हमें वृद्धाश्रम की राह नहीं दिखायेंगे। घड़ी हमारे हाथा में होती है लेकिन समय तो उसके हाथ में रहता है। सबके जीवन में समय बदलता रहता है। जिस हृदय में चक्रधर रहता हो, जिसके अंतःकरण में पारदर्शिता होगी वह अवश्य छलकेगी। कभी यह मत कहो कि मैने अपने घर में भगवान का घर बनाया है। बल्कि भगवान के घर में हमारा घर है तो कभी दुख या पराधीनता नहीं आयेगी। जो आपके हृदय में बैठा है, चेहरे पर वही दिखाई देगा।
एक लाख ने किया वीर सैनिकों को सैल्यूट
कथा पांडाल में उस समय देशभक्ति का अभूतपूर्व दृश्य दिखाई दिया, जब एक लाख से अधिक महिलाओं व पुरूषों ने खडे़ होकर तिरंगे को सैल्यूट करते हुये देश के वीर सैनिकों को राष्ट्रगान के साथ सामूहिक नमन किया। संत नागरजी ने व्यासपीठ से तिलक व पुष्प अर्पित कर राष्ट्रध्वज तिरंगे की पूजा की। मानव सेवा समिति के अध्यक्ष शैलेंद्र यादव तिरंगा लेकर खडे़ रहे। मुंबई से पधारे हीरालाल ने काव्य पाठ ‘लो संभालो अब ये प्यारा वतन साथियों, हम तो चले ये जहां छोड़कर, हम से बना जो हमने किया, बाकी तुम्हे करना होगा, वतन की खातिर जीना होगा, वतन की खातिर मरना होगा..’ सुनाया तो भारत माता की जय और वंदे मातरम से पांडाल गूंज उठा। हीरालाल ने 17 वर्ष तक देशभर में सैनिक सम्मान, बेटी बचाओ और पर्यावरण सरंक्षण के लिये बिना सीट वाली साइकिल से भारत यात्रा की है। उन्होंने कहा कि जो सैनिक 0 से 50 डिग्री तापमान में सीमा पर हमारी रक्षा कर रहे हैं, हम रोज एक माला उनके सम्मान में भी करें।
जब द्वारिकाधीश चरण चौकी पधारे
संत नागरजी ने कहा कि द्वारिकाधीश का राजस्थान व मप्र की धरती से गहरा रिश्ता है। वे द्वारिका से कोटा में चरण चौकी होकर निकले थेे। उन्होेने चंबल किनारे स्नान किया इसलिये इसका नाम चर्मन्यवती हुआ। फिर प्रतापगढ़ के पास उगरान में जाकर उग्र हुये। मप्र में नीमच, नागदा होते हुये उज्जैन पहुंचे। वहां महाकाल का चक्र है। हर ने नेत्र कमल चढाये तो प्रसन्न होकर महाकाल ने उन्हें कालचक्र दे दिया। महादेव बोले, जो मेरा दर्शन करके आपके पास आये, उसके नियमों में शिथिलता कर समय ठीक कर देना।
इसीलिये भारत में जहां श्रीकष्ण हैं, वहां शिवधाम भी है। पूर्व में जगन्नाथ और भुवनेश्वर महादेव। पश्चिम में द्वारिका-सोमनाथ, उत्तर में बद्रीनाथ-कैदारनाथ और दक्षिण में रामेश्वरम के साथ तिरूपति बालाजी हैं। उन्होंने ‘ठाकुर एक भरोसो मेरो, बैठा हूं पंगत में तेरी, अब सुख-दुख कुछ भी परोसो..’ गाया तो पांडाल भक्तिभाव में गूंज उठा।
मेरा देश-मेरी देह कभी पराधीन न रहे
‘मेरी नैया पडी मझधार, प्रभू इसे पार लगा देना..’ भजन सुनाते हुये उन्होंने कहा कि ईश्वर के आगे हमेशा प्रणम्य भाव में रहो। भक्ति मार्ग त्याग वृत्ति सिखाता है। ईश्वर से यही प्रार्थना करें कि प्रभू मेरा देश और मेरी देह कभी पराधीन न रहे। भजन ‘प्रबल प्रेम के पाले पड़कर, प्रभू को नियम बदलते देखा..‘ सुनाकर उन्होंने कहा कि भक्ति का रिमोट हाथ में लेकर उसके मंदिर जाकर देखो। वह बहुत दयालु है, सब ठीक कर देगा।
संत नागरजी ने अंत में भावपूर्ण भजन ‘गिरधर नहीं आयो रे..’ सुनाया तो पांडाल में भक्तों की आंखें नम हो उठीं। उन्होंने कहा कि ऐसे धार्मिक आयोजन से महिमा बढे़ तो भारत की, यश बढे़ तो ब्राह्मण का और कीर्ति बढे़ तो यजमान को जाती है। हम दक्षिणा में तुलसी पत्र लेकर पिछले 42 वर्षों से गांव और गरीब के लिये श्रीमद भागवत कथा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी को मोबाइल से बचाइये। 19 वर्ष की उम्र में इसने इतना चरित्रहीन बना दिया है जितनी गिरावट पिछले 300 वर्षो में नहीं हुई है। इसलिये बच्चों को मां और माला से जोडे़ं, उससे चैतन्य स्पर्श होगा।