न्यूजवेव @ नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर फ्रांस के सहयोग से भारत ने ‘अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन‘ की नींव रखी है। इसमें शामिल करीब 121 देश जीवाश्म ईंधनों से इतर ऊर्जा के विकल्पों को अपनाने के लिए एकजुट हुए हैं। इस सौर गठबंधन पहल पर वर्ष 2030 तक विश्व में सौर ऊर्जा के माध्यम से विश्व में 1 ट्रिलियन वाट यानी 1000 गीगावाट ऊर्जा-उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। एक गीगावाट में 1000 मेगावाट होते हैं। इससे अनुमान लगा सकते है कि सौर ऊर्जा एक नई क्रांति का आकार लेने लगी हैं।
सौर यूनिट अब 2.24 रुपये प्रति यूनिट में
भारत में औसतन 300 दिन सूर्य की रोशनी में नहाए होते है। इस पैमाने पर भारत, विश्व के ध्रुवीय देशों, विषुवत-रेखीय और अन्य भौगोलिक कारणों से बेहतर स्थिति में है। एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत के भौगोलिक भाग पर 5000 लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है । वहीं एक मेगावाट सौर ऊर्जा के लिए करीब तीन हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होती है। इस दृष्टिकोण से भारत में सौर ऊर्जा की विपुल संभावनाएं हैं। समय के साथ सौर ऊर्जा की लागत में भी कमी आयी है। आंकड़ें स्वयं इसकी पुष्टि करते हैं। वर्ष 2016 में 4.43 की दर वाली सौर यूनिट अब 2.24 रुपये पर आ गई है।
राजस्थान सहित 6 राज्य सौर उर्जा में आगे
देश में गुजरात, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में सौर ऊर्जा क्रांति की जमीन तैयार हो रही है। इसमें सरकारऔर निजी क्षेत्र बराबर भागीदारी कर इस संभावना को भुनाने में जुटा है। कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री मोदी ने मध्यप्रदेश के रीवा में सौर ऊर्जा अल्ट्रा मेगा पार्क को राष्ट्र के नाम समर्पित किया है। करीब 700 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता वाला यह एशिया का सबसे बड़ा एकल सोलर पार्क है। इसके साथ एक उपलब्धि यह भी जुड़ी है कि इसे दो वर्ष से कम की अवधि में तैयार किया गया है, जो देश में सौर ऊर्जा के मोर्चे पर बढ़ती क्षमताओं का जीवंत प्रतीक बन गया है। इसी प्रकार देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश क ेमिर्जापुर, गुजरात में कच्छ, तमिलनाडु में कामुती, राजस्थान में मथानिया, हिमाचल में ऊना और बिलासपुर जैसी तमाम सौर ऊर्जा परियोजनाओं के माध्यम से सौर ऊर्जा उत्पादन की मुहीम मजबूती से आगेबढ़ रही है।
साढे़ 4 लाख करोड का निवेश सौर उर्जा में
आज भारत की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़कर 36 प्रतिशत हो गई है। केवल बीते छह बर्षों में ही यह ढाई गुना बढ़ी है और इसमें सौर ऊर्जा का योगदान 13 गुना तक बढ़ा है। बीते छह वर्षों में इस क्षेत्र में आया साढ़े चार लाख करोड़ से अधिक का निवेश दर्शाता है कि उद्यमियों को भी भारत के भविष्य की झलक अक्षय-सौर ऊर्जा में ही दिख रही है।
प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण पर इस समय दुनियाभर में चिंतन हो रहा है। अक्षय ऊर्जा के माध्यम से भारत वैश्विक पर्यावरणीय संकट के समाधान में निर्णायक भूमिका निभा रहा है। इस समय भारत अक्षय ऊर्जा उत्पादक विश्व के शीर्ष तीन देशों में शामिल है। अकेले रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर परियोजना से लगभग 15.7 लाख टन कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन रोका गया है। यह धरती पर ढाई करोड़ से अधिक पेड़ लगाने के समतुल्य है।
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सोलर मिशन लागू कर नीतिगत दिशा में भी सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन देने की औपचारिक पहल की है। केंद्र सरकार के अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत में अक्षय ऊर्जा की भागीदारी 40 प्रतिशत और वर्ष 2035 तक 60 फीसदी हो सकती है। अक्टूबर,2020 तक मिले आंकड़ों के अनुसार 3,73,436 मेगावाट के कुल राष्ट्रीय बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा के स्रोतों का 89,636 मेगावाट का योगदान रहा।
प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए ऊंचे लक्ष्य तय किए हैं। इसके अंतर्गत वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट और वर्ष 2035 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन करने का लक्ष्य है। यदि यह लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने में अवश्य सफलता मिलेगी। (इंडिया साइंस वायर)
भारत में सौर उर्जा से आ रही नई क्रांति
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