‘वर्तमान परिदृश्य में हमारी भूमिका’ :
– स्वदेशी उत्पादन से स्वावलम्बन को अपनायें, विदेशी अवलम्बल छोडें
– इस संकट को एक नये अवसर में बदलें, अच्छाई का प्रचार-प्रसार करें
– भय, क्रोध को टालकर तत्परता से मानवता की निरंतर सेवा करें।
– सीमित साधनों में राष्ट्र के नवनिर्माण में मन की पूरी तैयारी जरूरी
– परस्पर सद्भाव, शांति व सहयोग से महामारी को हरायें
न्यूजवेव @ नागपुर
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ.मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में कहा कि कई शतकों के बाद समूची दुनिया कोराना महामारी से जूझ रही है। यह संकट नये भविष्य का निर्माण करने का संदेश लेकर आया है। इसे राष्ट्र के पुननिर्माण का अगला चरण समझकर विकास के नये मॉडल पर गंभीरता से विचार करना होगा।
‘वर्तमान परिदृश्य में हमारी भूमिका’ विषय पर बौ़िद्धक विमर्श करते हुये उन्होंने कहा कि हमारे देश में रोजगार के संसाधन सीमित हैं। इस महामारी के बाद उद्योग, खेती, व्यापार सब प्रभावित होंगे, महानगरों से मजदूरों के पलायन बढे़ंगे। जो मजदूर अपने गांव चल गये, अब आजीविका के लिये वे वहां क्या करेंगे। लौटकर आये तो उनको कितना रोजगार मिल पायेगा। इन सब बातों पर विचार करें तो भारत के लिये स्वावलम्बन ही इस आपदा का संदेश है। हमें विदेशी अवलम्बन पर निर्भरता खत्म करनी होगी।
स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करें
डॉ. भागवत ने सोमवार को नागपुर महानगर में आयोजित संघ के बौद्धिक वर्ग में कहा कि इस संकट को अवसर मानकर भारत के नवनिर्माण में जुट जायें। हमें नई अर्थनीति की व्यूहरचना बनानी होगी। शासन, समाज व कुटुम्ब मिलकर स्वआधारित तंत्र का निर्माण करें। हर क्षेत्र में स्वदेशी के आचरण को स्वीकार करें। रासायनिक खेती बदलकर हमें जैविक खेती व गौपालन का अभ्यास करना होगा। हम संकल्प करें कि गुणवत्तापूर्ण स्वदेशी उत्पाद उपलब्ध करायेंगे। हम अपने देश में बनी वस्तुओं का उपयोग करेंगे। बाहरी वस्तुओं को अपनी शर्तों पर ही देश में बेचने देंगे। विदेशों पर अवलम्बन हमें छोड़ना होगा।
उन्होंने कहा कि संकट में सामूहिकता से मानवसेवा करना हमारा कर्तव्य हैै। भारत ने दुनिया के के पीड़ित लोगों के लिये दवाइयां भेजकर मानवता का परिचय दिया है। संकट के समय हमारी भूमिका सहयोग की हो। विदुर नीति का उदाहरण देकर डॉ. भागवत ने कहा कि दूसरों के दोषों को टालकर अच्छाई का प्रचार-प्रसार करें। निंद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध व असावधानी को छोडकर तत्परता से दूरगामी योजनाओं को लागू करने में जुट जायें।
लॉकडाउन के बाद नवनिर्माण में जुटना होगा
आज सरकार व शासन ने महामारी को रोकने के लिये कुछ प्रतिबंध लागू किये हैं, सकारात्मक होकर उनका पालन करें। 130 करोड़ भारतवासी देश की संतान हैं, वे सब अपने हैं। जब कोई क्रोध या भय में कुछ गलती करें तो उस सारे समूह से दूरी न बनायें। लॉकडाउन के बाद समाज में कुछ उद्वेलन हो सकते हैं। रोजगार व संसाधन सीमित होने से मन की तैयारी के साथ काम करने होंगे। सबके विकास के लिये हमें सद्भाव, सहयोग व शांति का वातारण बनाना होगा। याद रखें, इस महामारी से नदियों का जल, वायुमंडल और हमारी दिनचर्या पवित्र हुई है। पहले हम खुद अच्छा बनें, उसके बाद दूसरों को अच्छा बनाने का प्रयास करें। संघ के स्वयंसेवक अपनी कीर्ति-प्रसिद्धि के लिये सेवा कार्य नहीं कर रहे हैं। इस सेवा का श्रेय भी दूसरों को दें।
डॉ. भागवत ने कहा कि महामारी से डरने की आवश्यकता नहीं है, जब हम डरते हैं तो संकट का मनोबल बढ जाता है। संयम, संतुलन और आत्मविश्वास के साथ जरूरतमंदों की सेवा में निरंतरता बनायें रखें। हर कुटुम्ब कर्तव्यों का पालन करते हुये दूसरों के लिये उदाहरण बन जाये तो महामारी पर विजय निश्चित है।