Sunday, 3 November, 2024

स्वाइन फ्लू, डेंगू की महामारी से जीत रही मानवीय संवेदनाएं

अरविंद .
‘कर के देखो, अच्छा लगता है…, स्वैच्छिक रक्तदान की यह थीम युवाओं को एक उम्दा संदेश दे रही है। राजस्थान में युवावर्ग ने मौसमी बीमारियों के लड़ने के लिए मानो रक्तदान क्रांति का बिगुल बजा दिया। पिछले कुछ माह से मौसम परिवर्तन के कारण लाखों मरीज स्वाइन फ्लू, डेंगू, चिकनगुनिया, स्क्रब साइटस जैसी वायरस जनित जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। सरकारी व निजी अस्पतालों में पहुंचने वाले रोगियों की संख्या ने पिछले सारे रिकाॅर्ड तोड़ दिए। अस्पतालों के ओपीडी में प्रतिदिन 20 हजार से अधिक रोगी आए, उनकी भीड़ देख सहज अंदाजा लगा सकते है कि महामारी घर-घर दस्तक दे चुकी थी।
राजस्थान के कई जिलों में इस वर्ष स्वाइन फ्लू व डेंगू का प्रकोप जारी है। ऐसे में सबसे बड़ी जरूरत रही स्वैच्छिक रक्तदान की। गंभीर बीमारियों से जूझ रहे ग्रामीण मरीज अब तक ब्लड बैंकों में रक्त की कमी से जूझते थे लेकिन रक्तदाता टीमों ने 24 घंटे आॅनलाइन निस्वार्थ सेवाएं देते हुए कई मरीजों को जीवनदान दिया। ब्लड गु्रप पाॅजिटिव हो या नेगेटिव, जरूरत आरडीपी की हो या एसडीपी की, रक्तवीरों का काफिला थमा नहीं। वे जोश के साथ बढ़ते चले।

देश में 60 प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान
इंडियन सोसायटी आॅफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनो इमेटोलाॅजी की राज्य इकाई के अध्यक्ष डाॅ.वेदप्रकाश गुप्ता के अनुसार, इस समय केवल स्वीडन में 100 प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान होता है। भारत में 60 प्रतिशत है, इनमें तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र व राजस्थान में सर्वाधिक रक्तदान होता है। राजस्थान में 70 प्रतिशत तक स्वैच्छिक रक्तदान होता है।

ये है सोशल मीडिया का कमाल
मैं इंसान हूं, इंसानियत का मान करता हूं, किसी की टूटती सांसो में फिर से हो जीवन, बस यह जानकर अक्सर रक्तदान करता हूं...’ जैसी सोच के साथ लहू का दान करने वाले युवा रक्तवीरों से राज्य की धरती गौरवमयी है। ऐसे रक्तदाताओं की कमी नहीं, जो वाॅट्सअप या फेसबुक पर विभिन्न रक्तदाता ग्रुप से जुड़कर अनवरत सेवाएं दे रहे हैं। अवेयरनेस इतनी कि आॅनलाइन पर मेसेज चल रहे हैं- ‘कर के देखो अच्छा लगता है..’ देखते ही देखते दूसरों को जीवनदान देने का कारवां गांवों तक पहुंच गया।

सेवा का एक नशा ऐसा भी
ब्लड मोटिवेटर एनएस नेगी ने बताया कि राजस्थान जीवनदाता ब्लड हेल्पलाइन के सुरजीत गोठवाल व ओमप्रकाश बुनकर जयपुर में भर्ती सैंकड़ों डेंगू व स्वाइन फ्लू मरीजों को तत्काल रक्त पहुंचाने में दिन-रात निस्वार्थ सेवाएं दे रहे हैं। राज्य के पश्चिमी जिलों तथा अन्य राज्यों के जरूतरमंद रोगियों के लिए एक काॅल पर स्वैच्छिक रक्तदान करवाना उनका मिशन है।
टीम रक्तदाता के काॅर्डिनेटर जय गुप्ता के अनुसार, डेंगू रोगियों की तादात बढ़ने के साथ ही रक्तदाताओं का कारवां भी बढ़ता जा रहा है। राज्य के विभिन्न जिलों में रक्तदान शिविरों से हजारों रोगियों को राहत मिल रही है। कई डोनर एसडीपी टेस्टिंग में सफल नहीं हो पाते है, लेकिन उनका जज्बा कम नहीं हुआ। एक मैसेज पर अनेक रक्तदाता स्वैच्छिक मदद के लिए आगे आ रहे हैं।  झालावाड जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरतमंद रोगियों को रक्त मुहैया करवाना चुनौतीपूर्ण रहा लेकिन युवा रक्तदाताओं के उत्साह ने हजारों चेहरों पर मुस्कान लौटा दी।

नई जान फूंकती है एसडीपी
हाडौती अंचल के 7 ब्लड बैंकों में 15 हजार यूनिट रक्त संग्रहण की सुविधा है। इनमें से कुछ ब्लड बैंकों में एफरेसिस मशीन होने से एक यूनिट रक्त को तीन भागों में विभक्त करते हैं। जिससे 3 रोगियों की जान बच सकती है। एसडीपी टीम रक्तदाता के संयोजक नीरज सिंह, हरजिंदर सिंह व कुशाल जैन ने बताया कि टीम के 140 सदस्यों द्वारा नेगेटिव ग्रुप के रोगियों को रात्रि में भी रक्त उपलब्ध कराया जा रहा है। वे एक माह में 180 तथा प्रतिदिन 20 से 25 एसडीपी करवा रहे हैं। डोनर के ब्लड को प्लाज्मा, प्लेटलेट्स व पीसीवी के रूप में विभक्त करते हैं। प्लेटलेट्स दो तरह की होती है। आरडीपी हमेशा फ्रेेश रक्त से ही बनती है। जबकि एसडीपी सिंगर डोनर प्लेटलेट हैं, जिन्हें 4-5 दिन तक जीवंत रख सकते हैं।  डेंगू रोगी को एसडीपी रक्त मिलने पर 2 से ढाई हजार प्लेटलेट्स बढ़ जाती है। सामान्य व्यक्ति में 2 लाख प्लेटलेट काउंट होते हैं। डेंगू रोगी में ये गिरते हुए 6 हजार तक आ जाते हैं। ऐसे में एसडीपी संजीवनी की तरह उन्हें जीवनदान देती है। समूह के सदस्य सक्रियता से रक्त सहायता कर रहे हैं।
लहू बोल रहा है..
युवा सुरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि किसी परिचित के जन्मदिन, त्यौहार, जयंती या विवाह समारोह में जैसे अवसर पर भी रक्तदान शिविर आयोजित कर रक्तवीरों ने कीर्तिमान रच दिए। युवतियों एवं महिलाओं ने भी रक्तदान में कदम आगे बढ़ाए। 30 से 40 वर्ष की उम्र वाले युवा सर्वाधिक रक्तदाता हैं। राज्य सरकार की पहल पर काॅलेज व यूनिवर्सिटी में रक्तदान शिविर लग रहे हैं, जिससे युवाओं के ब्लड ग्रुप का पता चल जाता है।
कहीं मध्यरात्रि में रोगी की प्लेटलेट्स तेजी से गिरने लगी तो रक्तदाता एसडीपी रक्त की मदद के लिए दौड़ पडते हैं। न कोई धर्म न कोई ग्रुप। हर युवा के मन में जरूरतमंद की मदद करने की मुहिम। कोटा शहर में 568 थैलेसिमिक बच्चों को 3 ब्लड बैंकों से रक्त मुहैया कराया जा रहा है। इन बच्चों को 7,15 या 20 दिन में नियमित रक्त की जरूरत होती है।

डेंगू व स्वाइन फ्लू मरीजों की संख्या ज्यादा
शहर के 3 सरकारी अस्पतालों में 2550 बेड तथा 25 प्राइवेट अस्पतालों में 750 बेड हैं। संभागीय मुख्यालय कोटा में 12 लाख की जनसंख्या पर तीन सरकारी अस्पतालों में कुल 150 डाॅक्टर्स व 50 सुपर स्पेशलिस्ट हैं।
सरकारी अस्पतालों के हालात इतने भयावह कि मरीजों की संख्या ज्यादा होने से उन्हें फर्श पर लिटाकर इलाज करना पड़ा। हालात इतने नाजुक हैं कि प्रसूताएं व नवजात शिशु भी डेंगू की चपेट में आ गए। व्यवस्थाओं से नाराज जिला कलक्टर रोहित गुप्ता को कहना पड़ा कि मुझे आंकडे नहीं, रिजल्ट चाहिए।
शहर में 1500 हाॅस्टल व 15 हजार पीजी हाॅस्टल संचालित हैं, जिनमें कूलर्स की नियमित सफाई नहीं होने से विभिन्न राज्यों से यहां कोचिंग ले रहे विद्यार्थी डेंगू व स्वाइन फ्लू की चपेट में आए। नगर निगम की अनदेखी से खाली भूखडों में जमा पानी व गंदगी के ढेर से मच्छरों का प्रकोप कई गुना बढ़ गया।
रक्त एक-रिश्ते अनेक
– सिर्फ 350 मिमि खून दान करने से औसत 4 जिदंगी बचाई जा सकती है।
– एक वयस्क के कुल वनज का 14 प्रतिशत वजन उसकी हड्डियों का होता है।
– शरीर में रक्त वाहिकाएं एक सीध में फैलाने पर लंबाई 10 हजार मील हो जाएगी।
– रक्त के 8 ग्रुप हैं, जिसमें एबी नेगेटिव तथा ओ नेगेटिव दुर्लभ होते हैं।
– सामान्य व्यक्ति में 2 से ढाई लाख प्लेटलेट्स काउंट होती है।

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