न्यूजवेव @ नई दिल्ली
एक दिहाड़ी मजदूर परिवार….जो कोरोना महामारी में हुये लॉक डाउन के दौरान अचानक काम बंद होने से दो वक्त की रोटी के लिये तरसने लगा तो दिल्ली से खाली हाथ अपने गांव की ओर पैदल ही चल पड़ा। यह सोचकर कि गांव में रहकर कुछ मजदूरी कर लेंगे, खुद भूखे रह लेंगे लेकिन बच्चों का पेट तो भरना ही है..
इस बीच, रास्ते में गुजरते हुये एक कार में सवार समृद्ध परिवार की नजर इन पर पड़ी.. तो कार में बैठी महिला से गरीबी में इनकी तकलीफ देखी न गई और उन्होंने कार रोककर इनसे खाने-पीने के लिये कुछ मदद करने की पेशकश की..। मजदूर महिला ने झिझकते हुए मना किया तो उसके पति ने भी यह कहते हुए कि ‘‘नहीं दीदी, हमारे पास आज का है, आप किसी और को दे देना‘… इस बीच मजदूर के भूखे बच्चों में से एक ने सकुचाते हुए पूछ लिया- ‘बिस्किट हैं क्या?‘…कार में बैठी महिला ने उन बच्चों के हाथों में बिस्किट दिए और आगे बढ़ गए…।
पिछले 15 वर्षों से मजदूरी कर रहे इस परिवार की हालात इन 15 दिनों में देखिये…हर सुबह नया सकट नया संघर्ष…. अचानक रोजगार बन्द, हाथ में थोड़े-से पैसे, माथे पर पूरी गृहस्थी का भार, पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर दूर का सफर, चार छोटे-छोटे बच्चे… फिर भी पति-पत्नी के चेहरे पर करोड़ों रुपयों से भी खरीदी न जा सकने वाली मुस्कुराहट…!
अर्थात् ‘हंड्रेड मिलियन डॉलर स्माईल‘ अभी कायम है… और संयोग ही देखना है तो देखिए मजदूर माँ के सिर पर रखे बैग पर लिखा है- ‘संतुष्टि‘… और पिता के सिर पर रखे बैग पर लिखा है-‘गुड टाइम‘.. दोनों मुस्कराते हुये मासूम बच्चों के हाथ थामे आगे चल पडे़। न कुछ पाने की चाहत, न कुछ खोने का डर… गरीबी और लाचारी में बहने वाले आंसू भी मानो मुस्कराते हैं…! जो खाली हाथ है, वह भरे हाथ वाले से ज्यादा बलवान है। तभी तो नई सुबह की आस में चल पड़ा है अनंत की ओर…!