नीरी के जल शोधन वैज्ञानिकों ने चेताया, पेयजल में टीडीएस 500 मिलीग्राम से कम होने पर आर.ओ. उपयोगी नहीं, इससे 70 प्रतिशत पानी की बर्बादी।
उमाशंकर मिश्र
न्यूजवेव@ नईदिल्ली
पीने के पानी को फिल्टर करने के लिये इन दिनों आर.ओ. वाटर प्यूरीफायर का उपयोग तेजी से हो रहा है। कंपनियां व डीलर्स पेयजल में टीडीएस की मात्रा अधिक बताकर भय पैदा करके आर.ओ. (रिवर्स ओस्मोसिस) प्यूरीफायर बेच रहे हैं। जबकि वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की कार्यशाला में जल शोधन विशेषज्ञों विशेषज्ञों ने बताया कि आर.ओ. की आवश्यकता सिर्फ उन्हीं क्षेत्रों में होती है जहां पेयजल में TDS की मात्रा 500 मिलीग्राम से अधिक हो।
इंडिया वाटर क्वालिटी एसोसिएशन के विशेषज्ञ वी.ए. राजू ने बताया कि पानी की गुणवत्ता को 68 जैविक और अजैविक मापदंडों पर परखा जाता है। टीडीएस इन मापदंडों में से सिर्फ एक है। पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले आर्गेनिक तत्वों में बैक्टीरिया एवं वायरस हो सकते हैं। वहीं, इनॉर्गेनिक तत्वों में क्लोराइड, फ्लोराइड, आर्सेनिक, जिंक, शीशा, कैल्शियम, मैग्नीज, सल्फेट, नाइट्रेट जैसे मिनरल्स के साथ पानी में खारापन, पीएच वैल्यू, गंध, स्वाद व रंग जैसे गुण भी शामिल हैं।
नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) के वैज्ञानिक डॉ.पवन लभसेत्वार ने बताया कि जिन इलाकों में पानी ज्यादा खारा नहीं है, वहां आर.ओ. की जरूरत नहीं है। जिन जगहों पर पानी में टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स (TDS) की मात्रा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है, वहां घरों में सप्लाई होने वाले नल का पानी सीधे पिया जा सकता है। उन्होंने चेताया कि आर.ओ. का अनावश्यक उपयोग करने पर सेहत के लिए मिलने वाले कई महत्वपूर्ण खनिज तत्व भी पानी से अलग हो जाते हैं। इसीलिए पहले घरों में पानी की गुणवत्ता चेक करवाने के बाद ही आर.ओ जैसे फिल्टर काम में लेना चाहिये।
प्रभावी नीति बनाने का सुझाव
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने आर.ओ. के बढ़ते उपयोग को लेकर दिशानिर्देश जारी करते हुए सरकार को प्रभावी नीति बनाने का सुझाव दिया है। एनजीटी ने कहा कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ऐसे स्थानों पर आर.ओ. के उपयोग पर प्रतिबंध लगाए, जहां पीने के पानी में टीडीएस की मात्रा 500 मिलीग्राम से कम है।
आर.ओ. के उपयोग से करीब 70 प्रतिशत पानी व्यर्थ बह जाता है। सिर्फ 30 प्रतिशत पीने के लिए मिलता है। एनजीटी ने कहा कि 60 फीसदी से ज्यादा पानी देने वाले आर.ओ. सिस्टम को ही मंजूरी दी जाये। इसके अलावा, प्रस्तावित नीति में आर.ओ. से 75 फीसदी पानी मिलने और रिजेक्ट पानी का उपयोग बर्तनों की धुलाई, फ्लशिंग, बागवानी, गाड़ियों और फर्श की धुलाई आदि में करने का प्रावधान हो।
अन्य तकनीक भी उपलब्ध
स्कूली बच्चों के सवालों पर आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर टी.प्रदीप ने बताया कि पानी फिल्टर करने के लिये सिर्फ आर.ओ. पर निर्भर नहीं रहें। दूषित पानी को साफ करने के लिए ग्रेविटी फिल्टरेशन, यूवी इरेडिएशन और ओजोनेशन जैसी कई अन्य तकनीक भी उपलब्ध हैं। अब ऐसी तकनीक आ गई हैं जिनसे वाटर प्यूरीफायर संयंत्र बुद्धिमान मशीन की तरह काम करेंगे। इनमें नैनो मैटेरियल्स, पानी की गुणवत्ता परखने वाले नए सेंसर, आर्द्रता व नमी सोखकर पानी में रूपांतरित करने वाली तकनीकें शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर)