हैैल्थ अलर्ट: भारत मधुमेह रोगियों की राजधानी (डायबिटिक केपीटल ऑफ द वर्ल्ड) बनता जा रहा है ।
न्यूज वेव / कोटा। बदलती जीवन शैली में डायबिटीज युवाओं के साथ ग्रामीण आबादी को भी तेजी से प्र्रभावित कर रही है। वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ.एस के पांडेय के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी कि भारत मधुमेह रोगियों की राजधानी (डायबिटिक केपीटल ऑफ द वर्ल्ड) बनता जा रहा है। भारत में मधुमेह रोगियों की संख्या 3.2 करोड़ है, जो वर्ष 2030 तक बढ़कर 8 करोड़ हो सकती है। दुनिया भर में 38 करोड़ लोग इस जानलेवा बीमारी के शिकार हैं। महिलाओं को प्रिंगनेंसी के दौरान डायबिटिज हो सकती है, जिसे जेस्टेशनल डायबिटिज कहते है।
क्या है मधुमेह?
जब रक्त में ग्लूकोज (शर्करा) की मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक होती है, उसे मधुमेह कहते है। खाली पेट होने पर रक्त में सामान्य तौर पर शर्करा का स्तर 125 मिग्रा. से कम और 75 ग्राम ग्लूकोज पीने के दो घंटे बाद 140 मिग्रा. से कम हो तो यह सामान्य होता है। लेकिन मधुमेह की स्थिति में खाली पेट रक्त शर्करा का स्तर 126 और 75 ग्राम ग्लूकोज पीने के 2 घंटे बाद 200 मिग्रा. से अधिक होता है।
मधुमेह का आंखों पर क्या प्रभाव पड़ता है
मधुमेह डायबिटिक रोगियों की आंखों की प्रॉब्लम को कई गुना बढ़ा सकती है। डायबिटिज पीडि़त के शरीर में इंसुलिन ठीक प्रकार से न बनने या इंसुलिन का उपयोग उचित प्रकार से ना होने के कारण ब्लड़ शुगर लेवल अधिक हो सकता है। बहुत ज्यादा ब्लड़ शुगर बढ़ने से शरीर में मांसपेशियों तथा आंखों के पर्दे (रेटिना) ब्लड़ वेसेल्स को नुकसान पहुंच सकता है। डायबिटिक रोगी की आंखों के पर्दे की ब्लड़ वेसेल्स से रक्तस्राव हो सकता है, अथवा पर्दे के केन्द्रीय भाग में सूजन हो सकती है, जिसे मेकुलर इडिमा कहा जाता है। इससे दिखाई देना कम हो सकता है अतः मधुमेह से पीडि़त व्यक्ति को प्रत्येक 6 माह में नियमित रूप से अपनी आंखों के पर्दे (रेटिना) की दवा डालकर जांच करवाना जरूरी है।
डायबिटिक रोगी नियमित परामर्श लें
यदि आपको इनमें से कोई लक्षण है तो अपने डॉक्टर से मिलें
1. आंख में धुंधलापन दिखाई दे रहा है।
2. आंखों के सामने स्पॉट्स, फ्लोटर्स अथवा शैडो दिखाई देना
3. आंख में तेज दर्द अथवा दबाव का अनुभव
4. एक अथवा दोनों आंखों से अचानक दिखाई देना ंबंद हो जाना
5. आंखों के आगे पर्दा सा दिखाई देना
6. आंखे चुंधियाना, दो चीजे दिखाई देना अथवा ब्लाइंड स्पॉट्स बनना
7. सीधी रेखा टेढ़ी-मेढ़ी अथवा विकृत दिखाई देना
डायबिटिक से आंखों में यह नुकसान
मधुमेह विभिन्न प्रकार से आंखों का नुकसान पहुंचा सकती है। जब ब्लड़ शुगर अधिक हो अथवा आप इंसुलिन उपचार शुरू कर रहे हो, तो आपको धंधलापन दिखाई दे सकता है। अथवा दृष्टि संबंधी अन्य समस्याऐं पैदा हो सकती है। लेकिन, यदि आपको किसी प्रकार का कोई परिवर्तन दिखाई न दे, तो आपकी आंखों को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए, लक्षणों पर दिखाई देने का इंतजार न करें, तुरंत अपनी अपनी आंखों के पर्दे (रेटिना) की दवा डालकर जांच करायें।
ग्लूकोमा व डायबिटीज
हालांकि, 40 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक व्यक्ति को ग्लूकोमा का खतरा अधिक रहता है, लेकिन मधुमेह से पीडि़त व्यक्ति को इसकी 40 प्रतिशत अधिक संभावना रहती है। यदि आप मधुमेह से पीडि़त है, तो आपको ग्लूकोमा का शिकार होने की अधिक संभावना है। ग्लूकोमा की स्थिति में रोशनी के आस-पास चमकीला घेरा अथवा रंगीन चक्र बनता है, लेकिन आमतौर इसके लक्षण दिखाई नहीं देते इसका उपचार न कराने से आंख में प्रेशर अधिक बनता है, जिससे आंखों की मांसपेशियां क्षतिग्रस्त होने लगती है, जिसके परिणाम स्वरूप आंखों की रोशनी समाप्त होने से नेत्रहीनता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ग्लूकोमा के उपचार में आई ड्रोप डालकर आंख के प्रेशर को कम किया जाता है अथवा लेजर या फिर परम्परागत सर्जरी की जाती है।
मोतियाबिन्द व मधुमेह
यदि आप मधुमेह से पीडि़त है तो आपको मोतियाबिन्द होने की 60 प्रतिशत अधिक संभावना है। स्वस्थ व्यक्ति की तुलना में मधुमेह से पीडि़त व्यक्ति को युवा अवस्था में मोतियाबिन्द होने का खतरा अधिक होता है। ब्लड शुगर को ठीक प्रकार से नियंत्रित न रखने पर रोग की स्थिति तेजी से बढ़ती है। यह रोशनी में बाधा डालती है और दृष्टि में धंुधलापन पैदा करती है। मोतियाबिन्द सर्जरी में आंख के कुदरती लैंस को हटाकर कृत्रिम लैंस लगाया जाता है, जिससे दृष्टि में सुधार होता है। कई बार मोतियाबिन्द सर्जरी के बाद डायबिटिक रैटिनोपैथी की स्थिति ओर भी बुरी हो जाती है।
डायबिटिक रैटिनोपैथी
रेटिना आपकी आंखों में रोशनी को सेंस करता है और जो आप देख सकते है, उसके बारे में मस्तिष्क को संदेश भेजता है। जब ब्लड़ वेसेल्स में ब्लड ग्लूकोज बनता है तो रेटिना क्षतिग्रस्त होने की संभावना रहती है। इस स्थिति को डायबिटिक रैटिनोपैथी कहते है। हो सकता है कि पहले आपको किसी प्रकार का परिवर्तन दिखाई न दे, लेकिन समय गुजरने के साथ आपके ब्लड वैसेल्स कमजोर होकर ब्लड़ वेसेल्स की दीवारों को नुकसान पहुंचा सकते है। इससे फ्ल्यूड लीक हो सकता है। मधुमेह बढ़ने की स्थिति में क्षतिग्रस्त ब्लड वेसेल्स समुचे रेटिना में फैल सकते है। इससे गंभीर रूप से दृष्टि दोष पैदा हो सकता है अथवा नेत्र हीनता की स्थिति भी पैदा हो सकती है।
रैटिनोपैथी का इलाज
पुतली फैलाने की दवा डालकर दोनों आंखों के पर्दे की विस्तृत जांच से डायबिटिक रेटिनापैथी का पता लगाया जा सकता है। आंख के पर्दे की सूजन का पता लगाने के लिए ओसीटी ऑप्टिकल कोहरेन्स टोमोग्राफी नामक जांच की जाती है। पर्दे की सूक्ष्म ब्लड वेसेल्स में लीकेज का पता लगाने के लिए एक विशेष प्रकार के एंजियोग्राम में डाई का उपयोग किया जा सकता है। डायबिटिक रैटिनापैथी की प्रारम्भिक अवस्था का उपचार आमतौर पर फोटोकोगुलेशन नामक लेजर पद्धति से किया जाता है। लेजर ब्लड वेसेल्स को सील करके लीकेज अथवा इसके बढ़ने की रोकथाम करता है। पर्दे की सूजन को कम करने के लिए एन्टीवेजेएफ इंजेक्शन का प्रयोग किया जाता है।
आंख के पर्दे पर खून उतरना – विटेक्टोमी
डायबिटिक रेटिनोपैथी की अग्रिम अवस्था में यदि रेटिना हट जाता है। आंख के पर्दे पर खून उतरने पर विटेक्टोमी नामक ऑपेरशन की आवश्यकता पड़ती है। विटेक्टोमी नामक ऑपेरशन में आंख के भीतर से स्कैर टिश्यु, ब्लड़, तथा धंुंधले फ्ल्यूड को ऑपरेशन द्वारा साफ किया जाता है। विटेªक्टोमी रोगी की आंख की दृष्टि सुधार सकती है, विशेषकर यदि रोग से बढ़ने से पहले उसे नियंत्रित कर लिया जायें।
रैटिनोपैथी: रोकथाम के उपाय
डायबिटिज से पीडि़त व्यक्ति को ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर तथा कॉलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रख संबंधी नेत्र संबंधी समस्याओं की रोकथाम कर सकते है। रेटिनापैथी के लक्षणों का शीघ्र पता लगाने के लिए हर वर्ष में 2 बार डायलेटिड आई एवं रेटिना का विस्तृत परीक्षण करना भी महत्वपूर्ण होता है। जिससे समय रहते हुए डायबिटिक रेटिनोपैथी का पता लगाया जा सके।
मधुमेह रोगी यह ध्यान रखें
– प्रतिदिन आधे घंटे तक तेज गति से चलें।
– आंखों, हृदय, किडनी, पैरों की जांच नियमित कराते रहे।
– ब्लड शूगर के लेवल में कमी आने पर आंखों के सामने अंधेरा, चक्कर आना, पसीना एवं हृदय गति अनियमित होने लगती है। इसलिए रोगी बिस्किट व ग्लूकोज साथ रखें।
(स्त्रोत: सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा)