Friday, 11 October, 2024

‘चढाये तो तेरी पेड़ी ही चढ़ाना, गिराये तो तेरे चरणों में गिराना’ -पं.प्रभूजी नागर

बारां में बड़ां के बालाजी धाम में तीसरे दिन विराट श्रीमद् भावगत गंगा महोत्सव में 70 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने भक्तिरस में रचा कीर्तिमान
न्यूजवेव @ बारां

मालवा के दिव्य गौसेवक संत पं.प्रभूजी नागर ने बड़ां के बालाजी धाम में श्री महावीर गौशाला कल्याण संस्थान द्वारा आयोजित विराट श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के तृतीय सोपान में कहा कि जीवन में जब कोई बात बिगडने लगे, चारों ओर उलझनें बढने लगे तो परमात्मा से प्रार्थना करना कि ‘हे प्रभू, चढ़ाये तो तेरी पेड़ी ही चढ़ाना और गिराये तो तेरे चरणों में ही गिराना।’
रविवार को खचाखच भरे विराट पांडाल में पूज्य पं.नागरजी ने कहा कि हमारी भक्ति में मीरा जैसा भाव हो। हमें सत्संग से जो सद्ज्ञान मिलता है, उसे आचरण में उतारें। अपनी कथनी को करनी बनाकर देखो। हमें सभी ईष्टदेवों की कृपा चाहिये। इसलिये प्रत्येक मंदिर से जुडें, आपको अलग-अलग भक्ति रस मिलेंगे। सिर्फ राम नाम लेना ही पर्याप्त नहीं, उसमें खुद को भी रमाओ। याद रखें, जीवन में भौतिकता कितनी भी आ जाये, नास्तिकता कभी न आ पाये।
स्वयं को हमेशा ‘उप’ मानें


पूज्य पं.नागरजी ने कहा कि मनुष्य जीवन में योग्यतायें ‘उप’ होती हैं, विराट तो ईश्वर ही हैं। जब कैकयी ने कहा था, मेरा भरत राम से बढकर है तो दूसरे ही दिन उनका सुहाग और सम्मान चला गया था। इसलिये हमें सदैव खुद को उप अर्थात् छोटा मानना चाहिये। मनुष्य उपस्थित हो सकता है, प्रकट होने वाला तो परमात्मा है। हम उपकरण बना सकते हैं, पर पंचतत्व तो वही बनाता है। हम सिर्फ उपवन बना सकते हैं लेकिन उसे वृंदावन नहीं बना सकते। मनुष्य ‘उपकार’ कर सकता है, लेकिन ‘कृपा’ नहीे कर सकता है। आप बडे़ होकर भी उप ही रहेंगे, कृपा तो परमात्मा ही कर सकते हैं।
मेरा अवगुण भरा शरीर कैसे तारोगे..


सादगी के संत पं. नागरजी ने मार्मिक भजन ‘मेरा अवगुण भरा शरीर कहो ना, कैसे तारोगे..’ सुनाते हुये कहा कि कलिकाल में फैशन से अपराध और पाप बहुत बढ़ रहे हैं। इनसे जो सावधान करे वही सत्संग है। उन्होंने कहा कि कपडे़ की थैली पर लिखा होता है- फैशन के इस दौर में गारंटी की इच्छा न रखें। जब परिवार में बेटा-बेटी या बहू कोई बात न माने तो इसे याद कर लेना। पढ़ लिखकर माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोडने में कोई संकोच नहीं कर रहा है। यह महापाप के समान ही है।
उन्होंने प्रसंग सुनाया कि एक शिष्य को गुरू ने कहा, जब भी कोई पाप हो, घर के दरवाजे पर एक पत्थर रख देना, एक साल में पत्थरों का ढेर इतना उंचा हो गया कि वह दरवाजे में प्रवेश नहीं कर सका। तब गुरू ने कहा, इतनी कम उम्र में 6 फीट का दरवाजा बंद हो गया तो जीवन भर के पापों से परमात्मा के घर में कैसे प्रवेश कर पाओगे। इसलिये फैशन से बढते अपराधों से बचें अन्यथा पाप का घडा भर जायेगा।
सीता को 435 दिन राम से दूर रहना पड़ा

उन्होंने कहा कि भगवान को भूल जाना विपत्ति है और उनका स्मरण करना सबसे बड़ी सम्पत्ति है। सीता ने लंका की कुटिया में एक क्षण के लिये भगवान राम को विस्मरण कर दिया था, उसी पल माया मृग आ गया। जिससे 435 दिन उन्हें राम से दूर लंका में रहना पडा। याद रखें, भगवान को एक घडी भूलने की कीमत 435 दिन होती है, हम कितने समय भक्ति से दूर होकर राम को भूल रहे हैं, उसकी कीमत हमें चुकानी होगी।

पूज्य नागरजी ने ‘हरि भज लो, हरि भजने का मौका है..’ भजन सुनाया जो समूचे पांडाल में बैठे हजारों श्रद्धालु भावपूर्ण नृत्य करते हुये भक्ति रस में झूम उठे। उन्होंने कहा कि जीवन में आसक्ति जीवन में कभी भी आ सकती है। भौतिक विषयों में आसक्ति न रहे तभी वैराग्य महसूस करेंगे। उन्होने राजस्थान में जयपुर के पास गरीब संत खाटम महाराज का एक प्रसंग सुनाया और कहा कि जीवन में हमेशा सच ही बोलना है और जहां आरती हो रही हो, वहां जरूर पहुंचना है। इससे काले कर्म भी उजले हो सकते हैं।
बडां के बालाजी धाम में झलका ‘भक्ति का सागर’

रविवार को तीसरे दिन बडा के बालाजी धाम परिसर में विराट कथा पांडाल भी छोटा पड गया। कोटा, झालावाड व बारां जिले के साथ ही मध्यप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों से बडी संख्या में भक्त पं.नागरजी के ओजस्वी प्रवचन सुनने पहुंचे। श्रद्धालुओं की संख्या 70 हजार से अधिक हो जाने से सैकडों भक्तों ने पांडाल के बाहर बैठकर शांतिपूर्वक प्रवचन सुने। कथा समाप्ति के बाद भक्तों ने बडा़ के बालाजी मंदिर में दर्शन किये। पार्किंग स्थल पर बडी संख्या में बसों, ट्रेक्टर ट्रोलियों, निजी दुपहिया व चार पहिया वाहनों की लंबी कतारें लगी रहीं।

भागवत कथा में प्रदेश के खान व गोपालन प्रमोद जैन भाया, जिला प्रमुख उर्मिला जैन भाया, यश जैन भाया एवं समस्त पारख-कोठारी परिवार ने व्यासपीठ पर श्रीमद् भागवत की महाआरती की। भाया दम्पत्ति ने नियमित श्रीमद भागवत कथा सुनने वाले सभी श्रद्धालुओं का वंदन किया।

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