न्यूजवेव@ कोटा
परमपूज्य गणिनी आर्यिकाश्री 105 विभाश्री माताजी ने ‘अक्षय तृतीया’ पर्व पर दादाबाड़ी स्थित पुण्योदय अतिशय क्षेत्र नसियां जी में भगवान आदिनाथ की महिमा को बताते हुए कहा कि पुण्य और पाप के अनुसार प्रकृति का परिणमन हुआ करता है। एक समय वह था जब इसी पृथ्वी पर भोग भूमि और कल्पवृक्ष हुआ करते थे पर आज यहां कुछ भी दिखाई नहीं देता। जब प्रकृति का परिणमन हुआ तो इस पृथ्वी पर कल्पवृक्षों का अभाव हो गया, तब भगवान आदिनाथ ने प्रजा को उनके जीवन निर्वाह के लिये असि, मसि, कृषि, शिल्प, कला, वाणिज्य आदि षट् कर्म करने का उपदेश दिया।
पुण्य की महिमा को बताते हुए पूज्य गुरू मां ने कहा कि जो मुनियों को श्रद्धा भक्तिपूर्वक आहार दान देता है, वह महान पुण्य का संचय करता है और उसका यह पुण्य कभी भी क्षय को प्राप्त नहीं होता है। जैन शासन में भगवान आदिनाथ को धर्म तीर्थ का प्रवर्तक कहा जाता है तो राजा श्रेयांस को दान तीर्थ का प्रवर्तक कहा जाता है, क्योंकि राजा श्रेयांस ने ‘वैशाख कृष्ण तृतीया’ के दिन मुनिराज आदिनाथ को इक्षुरस का आहार दान देकर महान पुण्य का संचय किया था, इसलिए आज यह दिन ‘‘अक्षय तृतीया’’ के नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त हुआ है।
‘अक्षय तृतीया’ के अवसर पर पूज्य गुरू मां के सानिध्य में संगीतमय भक्तामर विधान का आयोजन किया गया। महामंत्री महेन्द्र कासलीवाल ने बताया कि माताजी के प्रवचन प्रातः 8.30 बजे व सायं सत्र में आनंद यात्रा सायं 7 बजे होगी।