Wednesday, 4 December, 2024

देश के सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही पर ध्यान दे सरकार

100वां राष्ट्रीय आरटीआई वेबीनारः 100 कार्यक्रमों के बाद सरकार को भेजेंगे सुधारों के प्रस्ताव
न्यूजवेव @ रीवा
सरकारी विभागांे में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये सूचना का अधिकार कानून आमजन तक किस प्रकार आसानी से पहुंचे और इसे कैसे मजबूती प्रदान की जाए, इस विषय पर राष्ट्रीय स्तर के 100वें वेबीनार में देश के कई सूचना आयुक्तों एवं विशेषज्ञों ने अनुभव एवं सुझाव शेयर किये।
आयोजक मंडल से सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने बताया कि यह कार्यक्रम 28 जुलाई 2020 से कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान प्रारंभ किया गया था जो इस 22 मई 2022 को 100वें पड़ाव पर पहुंचा है। इस शतकीय वेबिनार को देश के जाने-माने सूचना आयुक्त व मजदूर किसान शक्ति संगठन के सह संस्थापक एवं अन्य सामाजिक क्षेत्र की प्रसिद्ध हस्तियों ने संबोधित किया। एक दिवसीय कार्यक्रम दो भागों में कुल 10 सेशन में रखा गया। संचालन एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा एवं वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह एवं उनकी टीम द्वारा किया गया।
10 सत्रों में हुआ राष्ट्रीय मंथन

Live 100th Webinar

कार्यक्रम का शुभारंभ मध्यप्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने किया। उन्होंने सूचना के अधिकार पर अब तक के 100 एपीसोड पर प्रकाश डाला। विशिष्ट अतिथियों में इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस राजीव लोचन मेहरोत्रा, पूर्व रिटायर्ड जज डीसी वर्मा, मजदूर किसान शक्ति संगठन के सह संस्थापक निखिल डे, अरुणा रॉय, शंकर सिंह और पारस बंजारा, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व केंद्रीय मुख्य सूचना आयुक्त सत्यानंद मिश्रा, सतर्क नागरिक संगठन की प्रमुख एवं आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज, आरटीआई हेल्पलाइन गुजरात से आरटीआई एक्टिविस्ट पंक्ति जोग, फोरम फॉर फास्ट जस्टिस के होनोरेरी ट्रस्टी प्रवीण पटेल, उड़ीसा से ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट जयंत कुमार दास, जाने-माने आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल, उत्तराखंड के आरटीआई रिसोर्स पर्सन वीरेंद्र कुमार ठक्कर, युवा आरटीआई एक्टिविस्ट एवं पत्रकार सौरभ दास, माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु, राजस्थान के वर्तमान सूचना आयुक्त नारायण बारेठ, हरियाणा के पूर्व राज्य सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्मानी, छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्य सूचना आयुक्त मोहन पवार, पत्रकारिता क्षेत्र से सागर सतना पत्रिका समूह के जोनल हेड राजेंद्र सिंह गहरवार, सोशल ऑडिट क्षेत्र से झारखंड से डायरेक्टर गुरजीत सिंह, कर्नाटक से आरटीआई एक्टिविस्ट वीरेश बेलूर, आरटीआई वर्कर ताराचंद्र जांगिड़, राव धनवीर सिंह, देवेंद्र अग्रवाल, कानपुर से केएम भाई, जोधपुर से सुरेंद्र जैन, मध्यप्रदेश से गोविंद पाटीदार, राज तिवारी, जयपाल सिंह खींची, रिटायर्ड डीएसपी तालेकर, नरेंद्र सिंह राजपुरोहित क्रांति समय मीडिया से सुरेश मौर्य आदि प्रतिभागियों ने 10 अलग-अलग सत्रों में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
इन विशिष्ट मुद्दों पर हुई चर्चा
कार्यक्रम में मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने आरटीआई कानून के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। इसके बाद कार्यक्रम में मानवाधिकार और आरटीआई जिसमें आरटीआई कार्यकर्ताओं के ऊपर हो रहे हमले पर चर्चा हुई। दूसरे से दसवें सत्र में सुशासन और आरटीआई, न्यायपालिका और आरटीआई सहित आरटीआई की धारा 8, 9 और 11 के दुरुपयोग जिसमें लोक सूचना अधिकारियों द्वारा जानकारी छुपाई जाती है विषयक चर्चा, आरटीआई कानून की धारा 4 जिसमें स्वयमेव ही आरटीआई कानून के वर्ष 2005 में क्रियान्वयन के 120 दिन के भीतर जानकारी पब्लिक फोरम में साझा करनी थी, जो आज तक नहीं हुई, आरटीआई क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका, सूचना आयोगों में बढ़ रही पेंडेंसी एवं आयोग के आदेशों की अवहेलना, जवाबदेही कानून की आवश्यकता और देश के विभिन्न राज्यों में जवाबदेही कानून की स्थिति, आरटीआई कानून का उपयोग कर पत्रकारिता के क्षेत्र में क्या और कैसे बदलाव लाए जाएं, आरटीआई के बाद सोशल ऑडिट अर्थात सामाजिक अंकेक्षण कैसे किया जाता है उसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा और आरटीआई कानून के द्वारा देश में आरटीआई कार्यकर्ताओं ने क्या-क्या बदलाव किए हैं उनकी उपलब्धियों और सक्सेस स्टोरी जैसे कई मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई।

आरटीआई कानून की हर जगह चर्चा
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा कि आज देश में आरटीआई कानून की जगह-जगह चर्चा हो रही है और वह जीवित है यही बहुत बड़ी उपलब्धि है वरना सरकारें तो आरटीआई कानून को खत्म कर देना चाह रही हैं। और उसमें यदि सबसे बड़ा योगदान खत्म करने के पीछे किसी का है तो वह न्यायपालिका है जो आरटीआई कानून को लगातार संशोधित कर रही है। संशोधन इतना बुरा है कि नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
शैलेश गांधी ने कहा कि हिम्मत हारने की जरूरत नहीं है और इसी प्रकार लगे रहने से भविष्य में बड़े बदलाव होंगे। लोकतंत्र में बोलने लिखने और जानकारी की स्वतंत्रता मूलभूत अधिकारों में सम्मिलित है और यही हमारे भारत के लोकतंत्र की ताकत है। सभी पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की दिशा में इसी प्रकार मिलकर प्रयास करते रहें।

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