चातुर्मास : दूसरे की वस्तु लेने का मन में भाव आना अनिष्ठ का संकेत
न्यूजवेव @ कोटा/खानपुर
जो वस्तु तुम्हारे पास नहीं है, दूसरे के पास है, उसे लेने का भाव नहीं करना चाहिए, दूसरे की वस्तु लेने का भाव अनिष्ठ का संकेत है। अपनी गलती के लिए प्रायश्चित करना चाहिए, सच्चा ज्ञानी सजा से बचता नहीं है, सजा लेने स्वयं जाता है, जबकी राजनीति में सजा दी जाती है, स्वयं सजा लेना प्रश्चित होता है, तपो में सर्वश्रेष्ठ तप प्रायश्चित है। यह सद्विचार मुनि पुंगव श्री 108 सुधासागर जी महाराज ने चद्रोदय तीर्थ क्षेत्र चांदखेडी जैन मंदिर खानपुर में मंगलवार को व्यक्त किए।
मुनि पुंगव सुधासागर महाराज ने कहा कि किंचित मात्र भी गलती नहीं होने पर अपनी ही गलती माननी चाहिए, जहां उलाहना दे दिया सब खत्म हो जाएगा, सारी गलती स्वयं की ही माननी चाहिए। चाहे कितना ही काम बिगड जाए मन में ये भाव नहीं आना चाहिए कि ये उसकी वजह से हो गया, उसने मेरे साथ ऐसा कर दिया, ये कहना चाहिए की मेरा काम कोई बिगाड नहीं सकता। घर परिवार, माता, पिता, भाई, पत्नी, बच्चें किसी से भी कभी ये नहीं कहें की ये गलती उनकी है, सदा यही कहना चाहिए की ये गलती मेरी है। इस भाव से तत्पर्य है कि जीवन में ऐसा करने से कभी संकट नहीं आएगा, सारे कार्य ठीक होते चले जाएंगे। सुधा सागर महाराज ने राम व सीता का उदाहरण देते हुए कहा सीता ने स्वयं की गलती स्वीकार की। उन्होंने व्यक्ति को जीवन में आगे बढ़ने के लिए किसी पर दोषारोपण करने से बचने की बात कही।
सभी को आत्म विश्लेषण करने की आवश्यकता
सुधा सागर महाराज ने कहा कि हम सभी को सींच रहे हैं, आर्शीवाद दे रहे हैं, ओमकार मंत्र का जाप करवा रहे हैं, ईश्वर की स्तुति करने का मार्ग दिखा रहे हैं, लेकिन उसके बाद भी लाभ नहीं हो रहा तो आत्मविश्लेषण करने की आवश्यकता है, उन्होंने एक पौधे का उदाहरण देकर बताया कि एक पौधा लगातार बढ रहा है और एक नहीं चल रहा तो उसकी जड़ में जाना चाहिए, पौधे को हटाकर उसकी जगह को खोदकर जो दीमक लगा है उसे हटाकर पौधा लगाना चाहिए तभी वह बड़ा होगा। उन्होंने मोटिवेशन पर जोर देते हुए कहा कि व्यक्ति में सहन शक्ति होनी चाहिए, जैन दर्शन में भी स्वयंभू शक्ति की सीख दी गई है। स्वयं शक्ति वाला हमेशा आगे बढ़ता है। उन्होंने कहा कि नमोकार मंत्र का जाप करने के साथ ही सुनने मात्र से जीवन के सभी संकट टल जाते हैं।
जितना बढा साधु, उतनी ही सुविधा कम
उन्होंने कहा कि जितना बढा राजनैतिक होगा उसकी सुविधा उतनी अधिक होगी, और जैन समाज में जितना बढा साधु होगा उतनी ही सुविधा कम हो जाती है, कांटा लगे, कांच लगे, या कील लगे लेकिन चेहरे पर सामान्य भाव की तरह ही होना चाहिए। कोई शेरनी आ जाए तो उसे भगा नहीं सकते, मार नहीं सकते अपना रास्ता बदल नहीं सकते ऐसा भाव साधु का होना चाहिए चाहे जान चली जाए। उन्होंने साधु व ग्रहस्थ जीवन में अंतर बताते हुए सदमार्ग पर चलने की सीख दी।
चांदखेड़ी मंदिर के अध्यक्ष हुकम जैन काका ने बताया कि चांदखेड़ी में दिगंबर जैनाचार्य मुनि पुंगव सुधासागर महाराज ससंघ का चातुर्मास चल रहा है। चांदखेड़ी में विराजित मुनि पुंगव सुधासागर महाराज ससंघ के सानिध्य मे सुबह से शाम तक मंदिर में धर्म ध्यान की बयार बह रही है। यहां प्रतिदिन गुरू भक्ति, आदिनाथ स्वामी का अभिषेक और शांतिधारा, मुनिश्री सुधासागर महाराज के प्रवचन, आहार चर्या, सामायिक, शास्त्र वाचन, जिज्ञासा समाधान, आरती और वैयावृत्ति के कार्यक्रम जारी है। मुनिश्री के संघ में मुनि महासागर, मुनि निष्कंपसागर, क्षुल्लक गंभीरसागर और धैर्यसागर महाराज चांदखेड़ी में विराजमान है। चातुर्मास के दौरान भक्ति की बयार बह रही है, श्रद्धालु भक्तिभाव से यहां सदविचारों को ग्रहण कर जीवन में उताने का प्रयास कर रहे हैं।