न्यूजवेव @ खुजनेर
हमने सांसारिक जीवन में परस्पर लडाई-झगडों में ही इतना समय गुजार लिया अब शेष जीवन सुधारने के लिये हमें भक्ति भाव से जुडना होगा। क्योंकि जिसको जीवन में कोई ज्ञान नहीं है, उनका समाज में भी कोई मान नहीं है। जीवन की जंग जीतने के लिये ज्ञान जरूरी है। यह बात 14 वर्षीय बाल आचार्य पं.गोविंद नागर ने श्रीमद भागवत कथा के अंतिम सोपान में अपने धाराप्रवाह प्रवचन में कही।
आचार्य पं.गोविंद ने कहा कि आज भक्ति का रंग सबको नहीं चढ़ रहा है, इसीलिये जीवन फीका सा लगने लगता है। जो भक्ति से दूर हैं, उनके जीवन में आनंद की अनुभूति नहीं है। कथा-सत्संग में बैठने से आपके सारे पाप बंद नहीं हो जायेंगे लेकिन कम अवश्य हो जायेंगे। एक प्रसंग सुनाते हुये उन्होंने कहा कि इस कलिकाल में मूर्ख को चारों वेद का ज्ञान सुना दो, उनका ज्ञान से जुडाव नहीं हो सकता। कथा श्रवण उनके लिये भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है जबकि समझदार को ईशारा ही काफी होता है। वे सत्संग में बैठकर अपने मन और विचारों को सुधार लेतेेेेेेेेे हैं।
उन्होंने समधुर भजन ‘न आवा है, न जावा है, जीवन पछतावा है…’ सुनाते हुये कहा कि हम बचपन से मन की करते हैं, कभी संतन की नहीं सुनते हैं। इसी मूर्खता में अनमोल जीवन बीत गया तो अंत में पछतावे के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा। हमने झगडों में ही जीवन बिता लिया तो गोविंद सीधे कर्मों की सजा ही देता है। मनुष्य जीवन के तार भक्ति से जोडकर सुधारने का प्रयास करो। 14 वर्षीय बाल आचार्य गोविंद मालवा के गौसेवक संत पं.कमल किशोर नागरजी के सुपौत्र हैं।