Friday, 11 October, 2024

भारतीय वैज्ञानिक चाहते हैं शोध कार्य जनता तक पहुंचे

वैज्ञानिक सर्वे: भारत में विज्ञान संचार की जानकारी आम आदमी तक नहीं पहुंच रही
नवनीत कुमार गुप्ता

न्यूजवेव @ नई दिल्ली
विज्ञान प्रसार की लोकप्रियता को देखते हुए भारत सरकार ने 11 मई, 2022 को वैज्ञानिक सामाजिक उत्तरदायित्व (SSR) के दिशानिर्देश जारी किये हैं। इस दस्तावेज में विज्ञान संचार पर विशेष जोर दिया गया है। मान्यता हैं कि भारतीय वैज्ञानिक जनमानस के साथ अपने शोध कार्य साझा करने में उतने उत्साहित नहीं रहते हैं। जबकि एक सर्वे अध्ययन से पता चला कि अधिकतर वैज्ञानिक विज्ञान संचार के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से भारत विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। हालांकि आज भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें भारत पिछडा हुआ है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की जानकारी का अभाव इसका मुख्य कारण है।
अपनी तरह का यह पहला सर्वे था जिसका शोधपत्र ब्रिटेन की रॉयल मेट्रोलॉजिकल सोसायटी द्वाराएक अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका वेदर में प्रकाशित किय गया है। भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे के डॉ. अभय एसडी राजपूत और बिट्स-पिलानी (BITS) की प्रोफेसर संगीता शर्मा ने इस शोधपत्र को तैयार किया है।

Dr Abhay SD Rajput

इस अध्ययन के अंतर्गत, भारत के वरिष्ठ और अनुभवी वैज्ञानिकों जो भारत की तीन प्रतिष्ठित राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों भारतीय विज्ञान अकादमी, बेंगलुरु, भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, नई दिल्ली और राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, भारत (NASI),प्रयागराज के एलेक्टेड फेलो को ‘भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विज्ञान संचार’ पर एक ऑनलाइन क्रॉस-सेक्शनल सर्वे में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया।

करदाताओं के पैसे से शोध कार्य
सर्वे में 97 फीसदी शीर्ष भारतीय वैज्ञानिकों ने माना कि आम जनता तक विज्ञान के संदेश को ले जाना या विज्ञान संचार करना बहुत आवश्यक है। 78 फीसदी वैज्ञानिकों ने माना कि ‘करदाताओं के पैसे से किए जाने वाले शोध कार्य के बारे में जनता को सूचित करना वैज्ञानिकों का एक नैतिक कर्तव्य है।
शोध सर्वे के लेखक डॉ.राजपूत ने बताया कि ‘‘इसके निष्कर्ष उन धारणाओं से अलग हैं जो ‘वैज्ञानिक जनता के साथ विज्ञान संचार को कोई महत्व नहीं देते’ जैसी मनगढ़ंत अवधारणाओं पर हैं। इस शोध में भाग लेने वाले आधे से अधिक वैज्ञानिक विश्वविद्यालयों के कुलपति, शोध संस्थानों के निदेशक, विभागों के प्रमुख या समूह के नेता थे। ऐसे में इस शोध कार्य के परिणाम बहुत अहम हैं।
सर्वे में हिस्सा लेने वाले 80 फीसदी भारतीय वैज्ञानिक इस बात से चिंतित थे कि जनता की वैज्ञानिक अज्ञानता संभावित रूप से लोगों को वैज्ञानिक परियोजनाओं का विरोध करने और विज्ञान की प्रगति में बाधा उत्पन्न करने के लिये प्रेरित कर सकती है। इसीलिये अधिकांश वैज्ञानिकों ने विज्ञान के क्षेत्र में जन जागरूकता बढ़ाने और बेहतर विज्ञान-समाज संबंध स्थापित करने का समर्थन किया है। अध्ययन के अनुसार, 73 प्रतिशत वैज्ञानिक भविष्य में विज्ञान संचार से संबंधित गतिविधियों में भाग लेने के लिए इच्छुक थे।
अध्ययन मंें इस बात पर जोर दिया गया कि ‘विज्ञान से संबन्धित संस्थाओं को उचित नीति और व्यावहारिक हस्तक्षेप से ऐसा उत्साहजनक वातावरण तैयार करना चाहिए जहां वैज्ञानिक स्वेच्छा से और सक्रिय रूप से विज्ञान संचार में योगदान दे सकें और जनता के साथ संवाद कर सकें। शीर्ष भारतीय वैज्ञानिकों की विज्ञान संचार के प्रति सोच पर आधारित इस अध्ययन से जो निष्कर्ष मिले हैं वे वैज्ञानिकों के सामाजिक उत्तरदायित्व को निर्धारित करने के लिए नीति-निर्माण में संस्थागत और सरकारी संस्थाओं के लिए सहायक सिद्ध होंगे।

(Visited 367 times, 1 visits today)

Check Also

मोबाइल को और स्मार्ट बनाया मेटा एआई ने

नीला घेरा : 1 जुलाई से उपयोग करने के लिए उपलब्ध न्यूजवेव @नई दिल्ली वाट्सएप, …

error: Content is protected !!