अटरू की विशाल श्रीमद भागवत कथा के तीसरे सोपान में उमड़ा भक्तों का सैलाब
न्यूजवेव @अटरू
मालवा के गौ सेवक संत पं.प्रभूजी नागर ने कहा कि जीवन में भक्ति का होना ही सच्चे ज्ञान के समान है। जो भक्त आजीवन भगवान का नाम जपता है, उसका सहस्त्र नाम विष्णु हो जाता है। कथा-सत्संग में आकर आप सांसारिक चिंताओं को भूल जाते हैं। आपके मन के तार ईश्वर के द्वार से जुड जाते हैं।
नंदिनी गौ सेवा समिति, अटरू द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के तीसरे सोपान में शुक्रवार को गौसेवक संत नागरजी ने कहा कि आदि गुरू शंकराचार्य महाराज के पिता बचपन में शांत हो गये थे। इकलौते पुत्र शंकराचार्य ने मात्र 7 साल की उम्र में घाट पर कपडे़ धोने गई माता से कहा, मां मुझे भी नदी में डुबकी लगाने दे। नदी में तैरते हुये वे गहरे पानी में निकल गये। शंकर ने योजना बनाकर कहा, मां मगर ने मेरा पांव पकड लिया है। मां बोली, तू कह दे कि अगर मेरे लाल का पांव वो छोड देगा तो मैं बेटा शंकर को अर्पण कर दूंगी। ऐसा करके शंकर पानी से बाहर निकले और बोले-मां अब मैं शंकर के अर्पण हूं, इसलिये घर नहीं जाउंगा। वही शंकर हमारे आदि शंकराचार्य हुये।
उन्होंने कहा कि जिस शिला पर आदि शंकराचार्य बैठकर तपस्या करते थे, वही शिला 2013 में केदारनाथ हादसे में लुडककर केदारनाथ मंदिर के पास आ गई और पानी की दिशा ही बदल दी। यह है तप की शक्ति। कण-कण में नाम की महिमा होने से केदारनाथ मंदिर लाख विपदाओं में भी सुरक्षित रहता है। यह भक्ति की चमत्कारिक शक्ति है।
संत कबीर को ऐसे मिली दीक्षा
भक्तों से खचाखच भरे पांडाल में एक प्रसंग सुनाते हुये कहा कि संत कबीर की जिज्ञासा थी कि मुझे संत रामदास से दीक्षा लेना है। वे कई बार उनके पास गये, पर उन्होंने मना कर दिया। एक बार संत कबीर गंगा के घाट पर लेटे हुये प्रभू का स्मरण कर रहे थे, उसी समय संत रामदास वहां स्नान करने पहुंचे। अचानक अंधेरे में कबीर के सीने पर संत रामदास के चरण पड़ गये तो वे बोल उठे- राम-राम। इस पर कबीर झुककर बोले, भगवान मेरा काम हो गया, आपसे दीक्षा हो गई। इस तरह जो भगवान की भक्ति में भीगता है, उसे एक दिन दर्शन भी हो जाते हैं। पं.नागरजी ने कहा कि मंदिर जाते हुये मीरा ‘सांवरियो मिल गयो रे, गिरधर जादू कर गयो रे…’ भजन गाते हुये वह सशरीर भगवान में समा गई थी। उसे भक्ति में बैकुंठ मिल गया।
गुरू वही जो भगवान से जोड़े
पं.नागरजी ने कहा कि भक्त मोती समान होता है। जो स्वयं को गुरू कहते है, वह गुरू हो ही नहीं सकते। जो भक्त को भगवान से जोडे़, वही सच्चा गुरू है। जो अपने नाम से जोडे़, वह पाखंडी है। दुर्योधन द्रोणाचार्य को अपना गुरू मानता था लेकिन भगवान कृष्ण को नहीं। जबकि अर्जुन गुरू को सम्मान देते हुये भगवान कृष्ण की बात मानते थे, जिससे उनकी नैया पार हो गई।
कथा आयोजन समिति के प्रवक्ता ने बताया कि रोज दोपहर 12 से 3 बजे तक गौ सेवक संत नागरजी के ओजस्वी प्रवचन सुनने के लिये मध्यप्रदेश व राजस्थान से सैकडों भक्त रोजाना अटरू पहुंच रहे हैं। अटरू में इन दिनों धार्मिक मेले जैसा वातावरण है। श्रद्धालुओं की संख्या बढ जाने से ढोक तलाई मैदान में कथा पांडाल को दोगुना कर दिया गया है।